देखो सूरज खड़ा हुआ -निशा


(1)
अंधकार की चादर फेंक 
देखो सूरज खड़ा हुआ 
भाग्य की अनजान राह पर
अब तो वो चलने लगा।
चहुँ ओर दिशाएं खिलने लगीं
झरने सी पत्तियां झरी
स्वर हवा में बहने लगा
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(2)
इच्छाओं की इमारत बनी
अखबार पर बिखरने लगी 
फूल डाली-डाली हँसा 
पोखर संग बतियाने लगा।
दूर हिमालय की चोटी पर
बर्फ की ओढ़नी पड़ी थी 
चमक रहा चांदी सा चमचम
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(3)
ऊपर से नीचे तक देखो
कांप हरी थी थरथर दूब
उगता सूरज सुबह का
सोना, ईंगुर, घाम हुआ। 
नदी, पहाड़, वनस्पतियां
सब कुछ नम हथेली पर 
सरसों सम पड़ा हुआ
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(4)
धूप की किताब देख
बिस्तर मिचमिचाने लगा 
खुरदरे मुसे कागज पर
रोज का हिसाब मिला।
ग्वाले की पुकार सुन 
कदम डगमगाने लगा
भागमभाग मची सब ओर 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(5)
आम के सिर मौर आ गया 
पात-पात फुदकने लगा 
रंग भरी कूची लेकर 
दिशाएं चित्र बनाने लगीं।
अनजानी सी राहों पर 
कण-कण उछलने लगा 
मैना, बुलबुल चहक रही 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(6)
कोकिल कंठी कूक रही 
डाली-डाली फुदक रही 
स्वर का अभिमान लिए 
सूखे बांध की ओर बढ़ी।
जी हल्का करने को अपना 
ऊंची-ऊंची उड़ान भरी
कर्कश स्वर भी गूंज उठा 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(7)
ढिबरी की लौ बुझ चली
लीक-लीक चल पड़ी
चांदनी सिमट कर 
घर अपने चल पड़ी।
कुंआर कुछ बो रहा 
पोर-पोर मोह रहा 
तन-मन अगहन हुआ 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(8)
रात में बेला खिली  
प्रातः हुआ झर चली
महकाने धरा को 
फांक-फांक बिछ चली। 
धरती को सजाकर
प्राण अपने दे चली
कलीन सा बिछ गया 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(9)
माथा ठनका चौके का
चूड़ियां बजने लगी
चूल्हे की लकड़ियों का 
दिल भी दहल गया। 
बसंती बयार संग
घूंघट की आड़ में 
कामिनी सजग हुई
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(10)
सूरज की गगरी से 
टपक रहा गेरू था 
हौसले मशाल हुए 
कुछ हरे कुछ लाल हुए। 
खिलखिलाती धूप से 
पखेरु अंधेरा उड़ चला 
बछिया रंभाने लगी
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(11)
आँखों के साये से 
नींद को त्याग कर
सूरजमुखी चहक उठा 
प्रेम को तड़प उठा।
डालियाँ हिलने लगी 
मुख घुमा मिलने लगी
बन पंछी चहक उठे 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(12)
छोड़ कर रात की 
उदासी का जंगल 
घर,आंगन, रस्ते,चौराहे 
दिन कुछ रोबीला हुआ। 
अलसी की नीली आँखों में 
बाहर भीतर की तन्हाई
सागर कुछ गहरा हुआ 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(13)
भाग्य की अनजान राहें
जीत गईं अंधेरों से 
एक अकेली किरन ने 
बो दिए बीज सपनों के 
तम की पोटली को फेंक
भोर की हर दशा बांध
तिमिर की हर दिशा लांघ
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(14)
तारों के थाल ढले
गेंदे के फूल खिले 
रात डूबी दिन हुआ 
धुंधलका कुछ कम हुआ। 
तार पर टंगी हवाएं 
सतरंगी रंगी फिजाएं
टुकड़े टुकड़े सूरज बंटा
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(15)
धूप में तने खड़े 
वृक्ष थे उत्साह भरे
दिन यायावर हुआ 
नदिया के पार हुआ। 
रेत के पहाड़ पर
चांदी की झील में
बांसों के पेड़ पर
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(16)
हवा की डुगडुगी बजी
पर्ण मचलने लगे
खेतों में हरियाली बंटी
फागुन का रथ चला। 
हल ले किसान चला 
फसलों का सोना कटा
कृषक दल उछल पड़ा
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(17)
ठिठुरता बुढ़ापा रात का
खिल उठा कुनकुनी धूप में
फिर जले अगरबत्ती दीप
महक उठा घर आंगन बीच।
एक मुट्ठी प्यारा बचपन 
खेल का मैदान बचपन 
अधूरी छाया पूरी हुई 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(18)
दूर कहीं जल उठी 
अंधेरे की लौ 
ताल, कदम कुंआ उठा 
फूट पड़ी पौ।
चौके में सेंध पड़ी
बागों के ठाठ-बाठ
दिवस का ऊंचा ललाट
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(19)
फिर हुई बरसात 
झींगुर लगे बोलने 
फूटते कल्ले जमीं से 
लगे हाथ पांव मारने। 
इंद्रधनुष का साथ 
आँख तालो की झपी
मेघवन की कंपकंपी
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(20)
झूल रहे घोंसले बया के 
पेड़ बन गए पात्र दया के 
फूट-फूट कर बरसा पानी
धूप हवा की अजब कहानी। 
उजियारे के लम्बे हाथ
रहता दिन सूरज के साथ 
सपनों के बादल दूर हुए 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(21)
बौरों के दिन आए 
भौरों के दिन आए
पेड़ों की छाया में 
प्राणी अनुकूल हुए। 
फूलों की सांठ-गांठ 
पत्तों के हाथ जुडे़ 
मीठी अंगड़ाई लिए 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(22)
घिर आया रंग आसमानी 
ठनक रहा सरिता का पानी 
लो आ गए मक्का में दाने
जाग रहे घर, गांव सिवाने।
किस्से कुछ नए कुछ पुराने 
बिटिया का बापू गया है कमाने
इंतजार में चिट्ठी के रोना पड़ा 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(23)
पुरवा पछवा की जुगाली
सूरज ने ये धूप उठा ली
सारा दिन पक्षी सा भटके
शाम हुई डालो से अटके।
कैसे घर बादल से छाए
रह रह कर टूटती हवाएं
कोलाहल बिखरा पड़ा 
देखो सूरज खड़ा हुआ। 
(24
ठहरो सूरज ओ सूरज
मेरे द्वारे ठहरो सूरज
हाथ लगी किरणों की डोरियाँ
तुम्हें झुलाऊं सुनाऊं बोलियाँ।
दुख भरी उदासी की रात 
हाथ छुड़ा पीछे को भागी
किरणों की स्वर्णिमा जागी
देखो सूरज खड़ा हुआ। 


निशा नंदिनी भारतीय 
तिनसुकिया, असम


 



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