दिलजले-प्रवीर


दिल सागर सा हो गहरा
जीवन हो प्यार से भरा
तरंगों में सुनामी उफान हो
लहरों में मधुर सी गान हो
शिलाएं भी जब ना रोक सके प्रवाह
जाने तरंगों को कौन सी लगी आह
मन करता खंडित चुलबुले लहरों को
कैसे गाऊं गजल बिन बहरो को
चुप्पी चिर अधीर सी
खींच गई काली लकीर सी
जीवन काल में अब तक जो खींचा
पौधा मुर्झाया जो अब तक सींचा
काई सी जमी अब सागर तल में
कैसे जिएं कल के कल से 
आज के कल में
वेदनाओ ने किया खंडित है जज्बात
दिल पे जो हुए आघात
ना चुप रहने वाले अधर है सिले सिले
आओ मिले मुझसे 
हम है दिल - जले दिल - जले


प्रवीण राही(8860213526)



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