शर्मा जी का था खाली मकान
उसमें चढ़ाई किराए पर कई दुकान
शर्मा जी है पढ़े-लिखे
किताबों से है ज्ञान सीखे
किताब की दुकान हो दिल की चाहत थी
वर्मा जी को भी किताबों की आदत थी
बस बात आगे बढ़ गई
दुकान किताब की चढ़ गई
मोबाइल की, किराने की
दवाई की,नाई की
इनके बीच दुकान किताब की ....
सब पे ग्राहकों की लगती भरमार
किताबे भी करती ग्राहकों का इंतज़ार
हर दिन किताबें रोड का धूल फांक रही थी
समाज के पिछड़ेपन को
दुबक के झांक रही थी
धीरे धीरे
मालिक का होता रहा हौसला पस्त
पूरे दिन गालिब, मीर ......
की धूल साफ में रहता अस्त व्यस्त
महीने का किराया
हमारी बिक्री से नहीं
अपने जब से भर पाया
शर्मा जी से नहीं गया देखा
तथा कथित पढ़ी लिखी काली रेखा
शर्मा जी ने दुकान खाली कराने की ठानी
वर्मा जी ने भी उनकी बात मानी
ठेले पर किताबों का लदा जाता देख
सारी दुकानें मुस्कुरा रही थी
किताब एक दूसरे से लिपट
मुंह छुपा रही थी
प्रवीण राही(8860213526)
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