गंगा एक जीवंत नदी हैं। गंगा साधारण नदी नहीं हैं। हिंदू मन गंगा के साथ बड़े ही गहरे से जुड़ा है। अगर हम गंगा को भारत से हथ लें तो भारत का साहित्य अधूरा पड़ जायेगा। गंगा को हटा लें तो हमारे तीर्थ आधे से अधिक खो जायेगें। गंगा के साथ भारत के प्रण बड़े शहर गहरे से जुड़ेे हैं। हमारे देश के की आत्मका का प्रतीक ही गंगा है। गंगा बस इस लिए प्रसिद्व नहीं है कि वह एक विशाल नदी है। गंगा से बड़ी व विशाल नदीयॉं भारत ही नहीं पूरे विश्व में मौजूद हैं, मगर इतिहास गवाह है कि किसी नदी को इस नदी जैसा दर्जा नहीं मिला। यदि चार दशको के पहले की बात करें तो गंगा का पानी बरसो तक एक जगह रहने व बोतल में बंद रहने पर भी न खराब होता न उसमें कीड़े पड़ते।यह उसका कैमिकली गुण था।
गंगा में हमने सैकड़ो वर्षो से लाशे बहाई परन्तु उसके जल में सब कुछ लीन हो जाता हैं। हड्डीयॉं भी गंगा को कभी अपवित्र नहीं कर पाई। गंगा के जल का कई वैज्ञानिकों ने परीक्षण किया और सिद्व किया कि उसका पानी असाधारण है। गंगा जहॉं से निकली है उन पहाड़ो से और भी नदियाँ निकलती हैं। उनमें भी वही खनिज तत्व मिलते हैं। जो गंगा में मिलते हैं। फिर भी कोई जल गंगाजल तो नहीं हो जाता है। वैज्ञानिक भी मानते है कि जल विशिष्ठ है। सोचने वाली बात है कि जब सब नदियॉं लगभग एक ही जगह से निकली है तो कैसे कोई विशिष्ठ तत्वों से पूर्ण असाधारण हो जाती है और कोई साधारण रह जाती है।इस प्रश्न के खोज में लगे लोग इस रहस्य के नजदीक भी नहीं पहुँच पाये।
बहुत से रिषी मुनियों ने गंगा किनारे बैठ कर ईश्वर को पाने की तपस्या की थी, इसमें उसका जल आध्यात्मिक रूप से तरंगायित रूप से उनका सहयोग किया। न जाने कितनो ने गंगा के किनारे आधात्मिक चिंतन कर ईश्वर को प्राप्त किया।
मुक्ति का द्वार है गंगा, धर्म जाति देश का श्रंगार है गंगा।
गंगा सरकार है, गंगा मॉं को बारम्बार प्रणाम हैं।
आरती शर्मा देहरादून
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