गंगा दशहरा पर देहरादून से निशा

घोर तपस्या
की नृप भागीरथी 
लाये धरा वो गंगा 
नमन तुम्हें 
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी 
हुआ अवतरण ।


पावन पर्व
अवतरण दिवस
कल कल बहती
जीवन देती
पावन हुई धरा
गंगा तुम्हें प्रणाम ।


भारत वर्ष 
देश अद्भुध मेरा
माँ पृथ्वी,माँ नदियाँ 
करें पूजन 
गौ में ईश्वर सभी 
करूँ नमन तुम्हें ।


सभ्यता मेरी
संस्कृति विलक्षण
देश की मेरी
विश्व ने माना अभी
महामारी से बचें।


जीवनदायनी
है माँ गंगा निर्मल 
करती है पोषित 
अन्न उगाती
हरित वसुंधरा 
फसल लहराती।


निर्मल गंगा
करती निवारण 
दैहिक संताप का
अमृतरूपा
सरिता हो पावन
बहती निर्बाध हो।


मोक्षदायिनी
पावन निर्मल हो
गोलोक गमन पे
तुम तारती
निर्झरणी तुम हो
तुम ही भगवती ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य



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