गंगा दशहरा पर ग्‍वालियर से राजकिशोर

पुण्य-सलिला, पतित-पावनी 
जिसका रूप महान है। 
मोक्ष-प्रदायिणी, तीर्थ-दायिनी
माँ गंगा भारत की पहचान  है।।
गंगा -जल पापों को हरता
फसलों का जीवन दाता है।
संस्कृति  का है अनवरत-प्रवाह
शिव,भागीरथ से गहरा  नाता है।।
गंगा -माँ जीवन देती है
देती है मोक्ष सदा मनभावन
विसर्जन कर अवशिष्ट और रसायन 
क्यो करते माँ गंगा को स्वयं  अपावन। 
हम  खुद ही माँ को मारेंगे 
तो फिर माँ को कौन बचायेगा।  
हम भले अन्तरिक्ष  विजय करें
पर विश्व  मातृहंता हमें बतायेगा।।
माँ-गंगा  तो हैं हेम-सुता
ये देव-लोक से आई  हैं।
अमृत देने जन-जन को यह
गोमुख से गंगासागर तक छाई हैं।। 
माँ के आँचल में ही तो पलते
कोटि-कोटि भारत-वासी। 
गंगा-तट पर ही शोभित हैं
हरिद्वार, संगम, काशी।। 
दिव्य विरासत माँ गंगा  की, 
रक्षा करने कमर कसे। 
नालों को रोकें मिलने से  गंगा में
और शहरी कचरा भी दूर रखें।। 
माँ के पुत्र तभी सच्चे  हैं
जब माँ का रूप सवारेंगे।
स्वच्छ -प्रवाहित गंगा -जल का
दर्शन  सभी निहारेंगे।।
लोक सुधारेंगे यदि अपना
तो परलोक स्वयं  ही सुधरेगा। 
माँ   का आँचल यदि स्वच्छ  हुआ
तो अमृत बच्चो पर बरषेगा ।।


कवि:
राज किशोर  वाजपेयी"अभय"
सम्पर्क :बी2/21,सेकटर-4
विनय-नगर, ग्वालियर 
मध्य-प्रदेश-474012
मोबाइल :9425003616



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ