गंगा जीवनदायिनी" (वर्गीकृत दोहे)
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गंगा जीवन दायिनी, धरती का शृंगार।
शैल-सुता अवदान से, है जग-जन-उद्धार।।1।।
(16गुरु,16लघु वर्ण, करभ दोहा)
गंगा है अति पावनी, मनुज करे निष्पाप।
हरती है अघनाशिनी, दैहिक-दैविक ताप।।2।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)
आयी लेकर स्वर्ग से, पावन-परिमल धार।
जल से धरती सींचकर, सतत करे उद्धार।।3।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)
गंगोत्री से निकलकर, बहे नगर-वन-ग्राम।
गंगा सागर में मिले, गंगासागर धाम।।4।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)
बहती जाती है जहाँ, लगे स्वर्ग का भान।
मिट्टी करके उर्वरा, देती जीवन-दान।।5।।
(18गुरु,12लघु वर्ण, मण्डूक दोहा)
कठिन भगीरथ दिव्य तप, प्रण का है परिणाम।
मर्म महत मंदाकिनी, धायी धरती धाम।।6।।
(13गुरु, 22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)
धाम त्रिवेणी बन बसा, संगम राज-प्रयाग।
पावन गंगा स्नान स…
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
मो. 9340623421
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