पावन गंगा धार है ,
पाप नाशिनी नाम ।
सुधा- सरिस -पय -पान है ,
तट है पावन धाम ।।
तट है पावन धाम,
पाप का करती मोचन ।
रखे भक्त का मान,
भाव में रहते जो जन ।।
कह निर्भय कर जोरि,
किनारा ,जैसे सावन।
नीर बहे भरपूर ,
सदा निर्मल जल पावन।।
2"
गंगा धरती पर बसी,
नहीं मात्र जलधार ।
भगीरथी के यत्न ने ,
किया वंश उद्धार ।।
किया वंश उद्धार ,
स्वर्ग से उतरी भू पर।
जलधारा का वेग ,
जटा से रोके शंकर।।
कह निर्भय कर जोरि,
सदा हो जाता चंगा ।
होता नित कल्याण ,
भजे जो हर हर गंगा।।
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निर्भय गुप्ता लिंजीर
रायगढ़(छ.ग.)
मोबाइल नं.9826945856
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