गंगा दशहरा पर विशेष
सबसे पहले मां गंगा को नमन करते हुए माँ की अर्चना में अपनी कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करना चाहती हूँ।
शिवाया मोक्ष प्रदायनी
दुहिता ब्रह्म तपस्वनी
हे नमामि भक्त वत्सले
तू वसुधा प्राण दायनी
भागीरथ तपस्या फलम
मां नमामि हम नमामि हम
दुर्गा रूप विराजितम
त्रिपथगा अतुल बलम
शम्भू जटा विराजित
जुनुहसुता बल प्रदम
तू जननी रूप निर्मलम
मां नमामि हम नमामि हम
त्रिलोक लोक तारणीम
तू दोष शोक हरिणींम
भजामि पूज्य पण्डिताम
आकाश पिंड धारिणीम
तू विष्णु पाद सु:शोभितम
मां नमामि हम नमामि हम
मां गंगे की स्तुति करके आइये हम मां गंगा के बारे में कुछ आवश्यक तथ्य जाने।
गंगोत्री से सागर तक गंगा 2500 किलोमीटर की यात्रा करती हुई.जब आगे बढ़ती है तो अपने अंदर न जाने कितनी ही नदियों को समाती हुई चली जाती है।
यमुना और सरस्वती से जहां पर गंगा का मिलन होता है,. उस स्थान से कुछ किलोमीटर दूरी पर दक्षिण भारत से निकली सोन नदी गंगा से मिलती है। यद्यपि गंगा से भी अधिका-अधिक लंबी दूरी तय करने वाली और भी बहुत सारी नदियां हैं किंतु फिर भी हमारे चेतन और अवचेतन मन में गंगा का एक अलग ही स्थान है वह हमारे लिए पूज्यनीय है.हमारे पापों को धोने वाली पाप-हारिणी गंगा के तट पर लोग अपने पाप धोने के लिए आते हैं।
गंगा से भी लम्बी और भी नदियां हैं किंतु इनमें से किसी भी नदी को पापों का हरण करने वाली या मोक्ष दायिनी नहीं माना गया है। मरने के बाद भी हर व्यक्ति की यही ख्वाहिश होती है कि उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में किया जाए ताकि उसे मरने के बाद मोक्ष प्रदान हो सके गंगा को लेकर सत्य सनातन काल से लेकर आज तक बहुत सी कहानियां और किंवदंतियों सुनने में आती हैं। गंगा के अलावा हम किसी और नदी के बारे में उसकी मेहता का इतना वर्णन नहीं सुनते जितना की गंगा के बारे में सुनते आये हैं।कहते हैं गंगा ब्रह्मा जी की पुत्री है, जिनको महर्षि भागीरथ जी अपने ध्यान योग और तपस्या के बल पर इस पृथ्वी पर मानव जाति के कल्याण और उद्धार के लिए लाए थे।
किंतु इस पृथ्वी में इतनी ताकत.इतनी शक्ति.इतना बल नहीं था कि वह गंगा के बेग को सहन कर सकती इसी कारण भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण किया।
शिव की जटाओं से प्रवाहित होते हुए पृथ्वी पर निकलने के कारण गंगा का एक नाम शिवाया कहा गया है।यही शिवाया तीन भागों में विभक्त हुई है उसकी एक धारा अकाश की और एक धारा पाताल की ओर व एक पृथ्वी की तरफ गई इन्हीं धाराओं में आकाश की ओर जाने वाली गंगा को मंदाकिनी कहा जाता है। आकाश में फैले विंडो और तारों के समूह को जिसे हम अकाश गंगा कहते है वह गंगा ही है या गंगा का ही एक रूप है ऐसा माना गया है। शिव की जटाओं से होकर निकलने के कारण यह शिवाय कहलाई। एक किवदंती है एक बार जहनु ऋषि यज्ञ कर रहे थे और उसी समय गंगा के प्रबल से उनका सारा सामान बिखर गया तो उन्होंने गंगा नदी का पूरा पानी पी लिया तब गंगा ने उनसे माफी मांगी तब जुनूह ऋषि ने अपने कान से उन्हें बाहर निकाल दिया और अपनी बेटी के रूप में स्वीकार किया तब से गंगा का एक नाम जाह्न्वी भी है।
गंगा सभी नदियों में पंडितों की तरह पूज्य है हर पूजा पाठ में गंगाजल का होना जरूरी है इस कारण गंगा का नाम पंडिता भी है।सभी नदियों में मुख्य होने के कारण इसको मुख्या कहते हैं। हुगली नगर के पास से गुजरने के कारण बंगाल क्षेत्र में इसका नाम हुगली पड़ा है कोलकाता से बंगाल की खाड़ी तक गंगा नदी का नाम हुगली नदी से के नाम से जाना जाता है। उत्तर-वाहिनी गंगे नमो नमः यह उत्तर के हरिद्वार , फर्रुखाबाद से कन्नौज होती हुई कानपुर से आगे बढ़कर इलाहाबाद पहुंचती हैं।इसके बाद काशी ( वाराणसी) मैं गंगा एक वलय लेती है जिसकी वजह से उत्तर-वाहिनी कहलाती है ।दुर्गाया भी कहा जाता है।
मतलब यह हुआ की भागीरथ द्वारा पृथ्वी लोक पर लाने वाली भागीरथी को तीन लोको की संपन्नता के लिए लाया गया था यह नदी जिन क्षेत्रों में है उस क्षेत्र का अपना एक अलग गौरव है।एक अलग इतिहास है।अगर हम देखें तो किसी और नदी को लेकर या किसी और नदी के उपमान के साथ ना ही कभी इतना ज्यादा लिखा गया है और ना ही उस पर फिल्में बनी है। हम देखते हैं कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री में भी कितनी ही फिल्में व गाने बने हैं तीन फिल्में तो राज कपूर ने ही बनाई है।
उनमें से उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्म "राम तेरी गंगा मैली" थी आज के और उस समय के दृष्टिकोण परिस्थितियों पर आधारित एक ऐसी फिल्म जिसने हमारे समाज के साथ ही साथ हमारी गंगा मां के हृदय के दर्द को भी समाज के सामने रख दिया था वह गंगा जो गंगोत्री से स्वच्छ चली थी इलाहाबाद तक आते आते अपने वास्तविक स्वरूप को खो बैठी उसकी खूबसूरती को उसके धवल निर्मल पावन जल को गंदा कर दिया जो गंगा हमको निर्मल स्वच्छ पावन और मोक्ष प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर लाई गई थी वह खुद ही मैली हो गई गंगा दशहरा अर्थात गंगा के अवतरण दिवस के अवसर पर हम सब मां गंगा को यह वचन देते हैं कि आप का त्याग कभी निष्फल नहीं जाएगा हम अपनी गंगा मां के आंचल को कभी मेला नहीं होने देंगे।
रेखा दुबे विदिशा मध्यप्रदेश।
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