गंगा दशहरा पर स्‍वाती चौहान देहरादून से

नमो नमो हे गंगा माँ 
अविरल बहता पानी तेरा,
कण-कण को छूकर,
गतिमान तुम निरंतर रहती। 
श्वेत रग की चादर ओढ़े,
इठला इठलाकर बहती हो,
गिरे जहाँ भी बूंद तुम्हारी,
अमृत वो बन जाता है। 
जन- जन की पूजनीय हो तुम, 
हर धर्म में है वास तुम्हारा। 
जनम से लेकर मृत्यु तक,
साथ हमारा तुम्हारा है। 
गंगे माँ का जाप कर,
मोक्ष पाने का मार्ग ढूंढते। 
साधारण हो या साधु संत,
सब तेरी जय जयकार करे।
नमन करूँ माँ गंगा का,
अविरल बहता पानी तेरा।
बस माँ अपराधी है तेरे हम
स्‍वार्थी हैं माँ हम
लेना ही जाने मॉं
तुझे निर्मल से क्‍या बना दिया।
पर मॉं क्षमा करों
बालक है तेरे उद्वार करो
नमन तुझे करती स्‍वाती
जीवन की नौका पार करों।

स्‍वाती चौहान देहरादून



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