आज भी है मेरा पावन गांव
आम का झूला पीपल की छांव
बारिश की कच्ची गलियों में
मिट्टी से वो सने से पांव
आज भी है मेरा पावन गांव।
आंगन में खटिया पर सोना
पौ फटते ही सोकर उठना
जाड़े में वह हाथ सेंकना
कभी घूमते थके न पांव
आज भी है मेरा पावन गांव।
संगी साथी बड़े थे प्यारे
बैलगाड़ी में बैठ के सारे
गर्म धूप वो नीम की छांव
आज भी है मेरा पावन गांव।
बीता दिन कुछ पता न चलता
सूरज की छाया संग चलते
बैलों की वह पूंछ पकड़ कर
शाम ढले और घर आ जाते
मुंडेरों पर सुनते रहते
कागा की हम कांव-कांव
आज भी है मेरा पावन गांव।
दूध दही से भरे पतीले
मूंछ बने तब तक थे पीते
लाड़ले थे दादी के सारे
उनके आंचल की प्यारी छांव
आज भी है मेरा पावन गांव।
शुद्ध हवा वह दाना पानी
रातों में परियों की कहानी
भुला नहीं सकते वह निशानी
मन में आते सदा यह भाव
आज भी है मेरा पावन गांव।
नीता चतुर्वेदी, विदिशा मध्यप्रदेश
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