जब पहली बार अपने पति से लड़ी किरण तो क्‍या हुआ जाने।

पति पत्नी का रिश्ता सदैव प्रेम भरी नोक-झोंक पर टिका होता है | यदि देखा जाए तो यही इस रिश्ते की मिठास होती है | कहा भी जाता है जहाँ दो बर्तन होते हैं वो खड़कते भी हैं | बात को तूल न देते हुए उसे समाप्त करने में ही समझदारी है |
मुझे आज भी याद है वो दिन जब मैं रसोई घर में सुबह का नाश्ता तैयार कर रही थी | तभी पति महाशय दनदनाते हुए रसोई में आए और कहा कि फटाफट तैयार हो जाओ हमे मथुरा के लिए निकलना है | इतने में मैं गाड़ी को साफ करके पैट्रोल भरवाकर लाता हूँ |मैं मन ही मन प्रसन्न थी कि कान्हा के दर्शन करने को मिलेंगे किंतु थोड़ी सी परेशान भी | इतनी जल्दी सब कैसे होगा? रसोई भी पूरी फैली  हुई थी | अम्मा जी की तबीयत भी ठीक नहीं थी | ऐसे में न तो उन्हें साथ ले जा सकते थे और न ही उन्हें अकेला छोड़ सकते थे | अम्मा जी से पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी ,जाने क्या सोचेंगी? यह सब सोचते हुए मैंने ना जाने का फैसला लिया | कुछ देर बाद जब ये वापस आए तो कहा कि तैयार नहीं हुई अब तक, कितनी देर लगेगी ? ऐसे भी कोई जल्दबाजी में कहीं जाया जाता है, खुद तो कुछ करना नहीं होता, कपड़े बदले और हो गए तैयार... हम औरतों को कितने काम करने पड़ते हैं | पैकिंग, घर समेटने से लेकर तैयार होने तक, एक आध घंटे में कैसे हो सकता है भला? ( मैंने थोड़ा झुंझलाहट में कहा) | उस समय जो मानसिक द्वंद्व मेरे भीतर चल रहा था वो मुझे और अधिक व्यथित कर रहा था | एक तरफ अम्मा जी तो दूसरी तरफ इनके मथुरा जाने का मन | 
इसे तो कहीं जाने को कहना ही बेकार है, जब चलने को कह रहा हूँ इतने नखरे हैं... कहीं न ले जाओ तो कहती है कि कभी घुमाने नहीं ले जाते | पूरा दिमाग खराब कर रखा है मेरा |(इन्होंने जोर-जोर से गुस्से में न जाने क्या -क्या कह दिया | ) अम्मा जी बीमार हैं और इन्हें मथुरा जाने की सूझ रही है.. किसी की दुख तकलीफ से इनको फर्क भी कहाँ पड़ता है ? इन्होंने जो ठान लिया सो ठान लिया, ठाकुर हैं, ठकुराई तो दिखाएंगे ही | (मैंने मन ही मन सोचते हुए स्वयं से कहा) | इतनी जल्दी मुझ से तैयारी नहीं होती,मैंने भी ताव में आकर कह दिया | ये गुस्से में घर से बाहर चले गए | इनकी ये आदत तो सही है, जब गुस्सा आता है तो बाहर चले जाते हैं | ऐसे में बात ज्यादा बिगड़ती नहीं | ऐसी टकराव की  स्थिति में एक के चुप रहने में ही समझदारी है वरना बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती |


किरण बाला 
(चण्डीगढ़ )



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