शादी को मात्र एक महिना हुआ था हम लोग एयरपोर्ट कालोनी में रहते थे घर में सदस्यों की संख्या अधिक थी , एयरपोर्ट कालोनी के पास विमान दर्शन में हमारा एक फ़्लैट था शादी के बाद हम लोग सोने के लिऐ वहाँ जाते थे , एक दिन हम सभी घर के लोग हाल में बैठ कर गप्पें मार रहे थे रात ग्यारह बजे पति देव उठ खडे हुये कहाँ चलो अब चलते हैं देवर वग़ैरा ने रोका पर वो बहार हाल से निकले और मुझे ईशारा किया चलो मै शर्म वंश नही उठी वो पता नहीं कब चले गये , तब सबने कहाँ यही सो जाओ भाभी , मैं भी वही सबके बीच सो सो गई सुबह जब श्रीमान जी आये तो क्रोध में उफन रहे थे , जब चाय ले कर गई तो जो मोटी मोटी गालियाँ मुझ पर बरसाई समझ नहीं आता है , बड़ा .. ही ...ही ....ऊह ऊह ...करने में मचा आता है , आज से यही सोना मुझसे बात नहीं करना , मैंने स्वारी कहाँ पर मानने को ही तैयार नहीं तोमेने कह दिया ठीक मुझे भी यहाँ नहीं रहना है , भेज दो मुझे इंदौर बहुत हो गया बिना गलती के गालियों सुन सुन कर मेरे कान दर्द करने लगे और रोते हुये मैं कमरे से बहार ..वो बिना खाये काम पर चले गये हमारी बातचीत कई दिनो तक बंद रही ,मुझे समझ ही नहीं आ रहा था , हुआ क्या ? इन दिनों इन्होंने उठते बैठते मुझे ताने मारने बंद नहीं किया , तब पता लगा की इनको भंयकर ग़ुस्सा आता है बात बात पर ....मेरी जेठानी ने समझाया जाओ माफ़ी माँग कर झगडा ख़त्म करो , नहीं तो ये पाण्डेय लोग है , हमारा जीवन नासूर बना देगे , मैं समझ नहीं पा रही थी मेरी गलती क्या है , पर सोचा चलो दीदी कह रही है तो माफ़ी माँग लेती हूँ १७ साल की उम्र थी कुछ ज़्यादा समझ थी नहीं दोपहर खाने के बाद डरते डरते में कमरे में गई संडे का दिन था , मैंने कहाँ क्षमा कर दे , मेरी कोई गलती नहीं है पर मैं क्षमा मागती हूँ आप नाराज़ न हो , सटाक जोर दार थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा और साथ ही आज होश आया है माफ़ी माँगने का यही काम उसी समय कर नहीं सकती थी , बहुत चर्बी होती है तुम औरतों को , सारी हेकड़ी निकाल दूँगा , मैं कुछ समझ नहीं पाई रोते हुये बोली नहीं रहना है यहाँ अभी अपने घर जाना है , मेरे सांस ससुर सब आ गये मुँझे प्यार से समझाया, इन्हें बहुत डाँटा , मेरे गाल पर उँगलियों के निशान उभर आये थे , उस थप्पड़ की गूंज आज भी कानो में गूंजती है । और गलती क्या थी समझ आई नही खैर .. कई दिनों बाद इनका क्रोध का तुफान थमा तब जाकर हमारी ज़िंदगी नार्मल हुई पहला झगड़ा आज तक याद है उसके बाद तो इतने झगडे हुँये की गिनती नहीं और मैं भी मज़बूत हो गई थी , परन्तु पहला झगड़ा आज तक समझ के परे है ग़ुस्से की हद होती है । परन्तु पाण्डेय लोगों का ग़ुस्सा ईश्वर ही मालिक है !
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
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