मेरा ईमान - शशि किरन

चला सहमी सी चढ़ते पुल के कोने पर खड़ी थी । यूँ तो रात उतनी गहरी नहीं हुई थी मगर सन्नाटा पसर चुका था । शायद कोई सवारी ढूँढ रही थी, एक दो ऑटो वालों को उसने रोका भी , पर उन लोगों ने जाने से मना कर दिया !  निराश होकर अचला पुल पर बने फुटपाथ पर चहलकदमी करने लगी , अचानक एक बाइक सवार अपनी बाइक की गति धीमी कर उसकी ओर बढ़ने लगा घबराकर अचला ने अपने कदमो को तेज कर लिया । बाइक सवार गन्दी सी गाली दे आगे निकल गया । पीछे से आता एक ऑटो रुका ,ऑटो वाले ने पूछा कहाँ जाना है? अचला ने कहा , "भैया शास्त्री नगर छोड़ दोगे" ? अंदर जाओगे क्या ? हाँ ! पर ज्यादा अंदर नहीं दो गली तक ही ! ठीक है ढाई सौ रुपए होंगे ! ढाई...सौ  अचला चौंक गई ! मीटर से चलो ,मीटर खराब है ! ढाई सौ तो बहुत ज्यादा हैं भैया, मुश्किल से सत्तर अस्सी रुपये होने चाहिए ! अब मैडम आपको अंदर भी जाना है, रात भी हो गयी है ,नाइट चार्ज भी लगता है ! चलो आप दो सौ दे देना ! उसी समय दो बाइक सवार मस्ती में किल्लाते हुए फिर से आते दिखाई दिए । मैडम रात का समय ठीक नहीं आप डेढ़ सौ दे देना बैठ जाओ ! अचला ने कुछ पल सोचा और ऑटो में बैठ गयी,पुल की ढलान उतरते ही शास्त्री नगर का मोड़ आ गया , भैया दाईं ओर मोड़ लीजिये ,ऑटो दाईं ओर मुड़ा और थोड़ी दूर जाकर बन्द हो गया ! क्या हुआ ? अचला ने अचरज से पूछा , मैं अंदर नहीं जाऊँगा' पर आपने तो कहा कि आप अंदर तक जाओगे यहाँ से तो घर काफी दूर है ! अरे ! बड़ी नैड़ी गली हैं यहाँ की, मुझे क्या पता था कि आप इतने अंदर की कह रही हो !  आप उतर कर पैदल चली जाओ मैं ना जा रहा ! अचला ने चारों तरफ देखा, सन्नाटे में झींगुरों की झाँय-झाँय साफ सुनाई दे रही थी ! पर भैया किराया तो अंदर गली तक छोड़ने का था, ऑटो वाला भन्नाता हुआ ऑटो से नीचे उतरा और तमतमाते हुए बोला, " तो डेढ़ सौ रुपए में तुमने ऑटो खरीद लिया ! अचला रुआंसी हो फटाफट ऑटो से उतर गई, किराया पकड़ा एक ओर खड़ी हो गई । ऑटो वाले ने जैसे ही अपना ऑटो घुमाया। अचला घूम कर रह गई। जिसके पीछे काले मोटे अक्षरों में लिखा था- मेरा ईमान, महिलाओं का सम्मान! 


-शशि किरन, दिल्‍ली



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