मेरा गाँव-प्रतिभा

दिल तो मेरा गाँव में है । 
गाँव में मेरे माँ - बाबूजी 
रहते  ठंढी  छाँव  में  हैं 
दिल तो मेरा गाँव में है । 


शहर बहुत बीमार हुआ है 
घर -घर सब लाचार हुआ है 
पार्क भी खुशी विहीन हुआ है 
बिल्डिंग  मेरा  सील  हुआ  है 
पर चिन्ता नहीं अपनी मुझको 
मेरा सुख -दुख माँ में है 
दिल तो मेरा गाँव में है । 


सुन लो मेरे शहर के भाई 
चाहो अगर गाँव की भलाई 
मेरे  जैसे  तुम  यहीं  रहो 
माँ  खुश होंगी  कहीं रहो 
गाँव का हाल भी बुरा हुआ 
अब तक तो माँ ठांव में हैं 
दिल तो मेरा गाँव में है । 


मैं खुश रहती माँ खुश होती 
मैं रोती तो माँ भी रोती 
पास स्नेह से सिंचित करती 
दूर भी रहकर आशीष देती 
तीनों जहाँ की खुशियाँ मुझको 
मिलती माँ के पाँव में है 
दिल तो मेरा गाँव में है । 


प्रतिभा स्मृति 
दरभंगा (बिहार )



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ