मेरा गांव बदल गया है,
अब यह शहर सा हो चला है .....
खो गई सोंधी मिट्टी की खुशबू,
सीढ़ीदार खेत और पहाड़ ।
कोई अपरिचित आकर उन्हें
सड़क बना गया है....
मेरा गांव बदल गया है,
अब यह शहर सा हो चला है .....
झर झर करते झरने,
कल कल करती नदियां...
वह रिमझिम पानी की फुहार,
विकास की अंधी दौड़ में,
इनमें नालियों का बसेरा हो गया है ।
मेरा गांव बदल गया है,
अब यह शहर सा हो चला है .....
दादी दादा दूध मलाई पिलाते थे,
सब बच्चों को बहलाते थे ।
खुले आकाश के नीचे ही
बच्चों को नींद आ पाती थी ।
चाचा चाची, दादा दादी,
नाना नानी सब मिलजुल कर थे,
सब अब दूर के रिश्तेदार बन पड़े हैं,
मेरा गांव बदल गया है,
अब यह शहर सा हो चला है
गोरी गैया आती थी, बछिया को दूध पिलाती थी,
चीब्बु बछड़ा भी चुपके से मैया का दूध पी जाता था,
बिंदिया बकरी उछल उछल कर
हरिया चाचा को छकाती थी ।
शेरू भी मचल मचल कर,
सबको राह दिखाता था ।
शाम से पहले एक एक
को घर पहुंचा जाता था ।
अब सब बदल गया है,
मेरा गांव बदल गया है...
अब यह शहर सा हो चला है ...
यह कैसा है समय है आया,
शेरू भी आज अकेला है
बेटा भी शहर में जा बसा,
दोबारा लौट कर ना आया,
बच्चों ने भी रिश्तो की
जगह मोबाइल को अपनाया
गाय बकरी चीबबू बिंदिया
बूढ़ा दादा संभालना पाया
चले गए सब एक-एक करके
किस्मत ने ,यह दिन दिखाया ...
देखो मेरा गांव बदल गया है,
अब यह शहर सा हो चला है......
समय बदला सब बदले,
कहां गए वह जुगनू ,तितली,
बछिया ,बकरी, दादी की थपकी,
झरने का पानी, मिट्टी की खुशबू,
खेतों में दौड़ना ..क्यों आज
हर हाथ मोबाइल ले पड़ा है.....
वह कंकरीट के जंगल,
परदादा के घर का खंडहर,
कोने मैं अटा पड़ा है ।
वह अकेलापन,
वह तरसे बूढ़े बुढ़िया ...
सचमुच सब बदल गया है,
मेरा गांव बदल गया है,
अब यह शहर सा हो चला है ......
यादों में खोई है बस जर्जर बूढ़ी आंखें..
वह अकेले दादी दादा....
क्यों भेजा पढ़ने शहर मैं
अपना प्यारा बेटा ।
क्यों बेटे के मोह में पड़कर..
उसकी हर बात मानी,
क्यों उसको साहब
बनाने के लिए ,
चलने दी उसकी मनमानी,
क्यों मेरा लाल चला गया है?
क्यों वह समय बदल गया है?
क्यों मेरा गांव बदल गया है?
क्यों यह शहर सा हो चला है?
रचना पंचपाल
नेहरू ग्राम ,देहरादून
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