मेरा शहर-इंदु

सुना है मेरा शहर, मेरा समाज
बदल रहा है...
हर तरफ़ बदलाव हो रहा है...
आपने सुना क्या...???


स्त्री विमर्श कर रहे हैं ये भी सुना... 
पर क्या पुरुष की आँखें छूती नहीं
स्त्री के उस संवेदनशील जगह को...?
देखा है इन्ही आँखों से तुम्हारी घूरती
गंदी मानसिकता को जो कभी सूट- बूट
तो कभी साधारण परिधान में तुम.. 
 हो अमीर या गरीब किन्तु तुम्हारी
 दानवी पशुता इतनी गंदी और
नंगी है कि दिख जाती है हर रूप में
भाँप लेती है तुम्हारी हर नजर को
आज ही देखा मैंने बस में...तुम्हें तो
अपनी उम्र का भी लिहाज नहीं...
की सामने वाली तुम्हारी बहन, बेटी
या पोती के उम्र की है.. तुम्हें तो उसे. भी
... 
जी तो चाहता है कि सर्वनाश कर दूँ
तुम्हारे वजूद का... फ़िर ध्यान
आता है नहीं मैं तो औरत हूँ न.. दया
और त्याग की प्रतिमूर्ति... इसका
मतलब क्या... कि तुम उसके साथ
कुछ भी...? नहीं... नहीं होगा अब ऐसा , 
नहीं बचोगे... तुम... 
क्यों हमेशा औरत ही
अलग- अलग रूप में प्रताड़ित होती
 रहेगी.? बंद करो दिखावे का नाटक 
अब और नहीं...विराम लगाओ...!!!
जय नारी शक्ति...


इंदु उपाध्याय, पटना बिहार



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