मै नीम का पेड़ कई वर्षों से यहां खड़ा हूं। कई जिंदगी के उतार चढ़ाव भी मैंने देखे है।बहुत से संगी साथी जो मेरे साथ खड़े थे।उनको एक एक करके मैंने अपनी आंखो के सामने नष्ट करते देखा और एक एक कर सबकी जगह कंक्रीट की इमारतों ने ले ली है।आज मै अकेला यहां हूं।लेकिन पक्षियों का कलरव,गिलहरियों की उछल कूद,जानवरो का भरी दुपहरी में मेरी छांव के नीचे आकर बैठना,पंछियों का मेरी कोटर में घोंसला बना कर रहना, बस इन सभी के साथ मेरा समय व्यतीत होता रहता है।सुबह सुबह जब लोग घूमने निकलते है तो दातुन करने के लिए मेरी टहनी तोड़ ले जाते है और मैंने सुना है कि मेरे पेड़ की छाल भी कई बीमारियों के इलाज के लिए असरदायक है,और श्रावण के महीने जब मेरी शाखाओं पर झूले डाले जाते थे तो सभी बच्चो बड़ों को देखकर मै खुशी से फूला नहीं समाता था।
पर पता नहीं आज का दिन अजीब सा लग रहा है,आज कोई पंछी और जानवर मेरे पास नहीं है।कुछ लोग है जिनके हाथो में धारदार कुल्हाड़ी है जिससे मैंने अपने साथियों को नष्ट होते देखा था, मेरे इर्द गिर्द जमा है और उन्हें मैंने बात करते सुना कि मेरी जगह पर भी एक बहुमंजिला इमारत बनेगी।
मेरी ही छांव के नीचे बैठकर नाश्ता पानी करते हुए मुझे ही यहां से हटाने की बात कर रहे है।बहुत से पत्थर,सीमेंट आदि चीजे मेरे पास आकर डाल दी गई है।और ये लोग एक एक कर मुझ पर प्रहार करते जा रहे है।ओह ये क्या अब तो एक भयावह मशीन कि आवाज भी आ रही है,ये तो मेरी ही तरफ आ रही है।एक भारी बुलडोजर मशीन मेरे पास आकर रुक गई थी।उसने आते ही मेरे आस पास की सारी मिट्टी को खोद दिया था और एक धक्का मुझे भी दिया पर मै अपनी पूरी शक्ति के साथ खड़ा रहा,तीन चार बार की चोट के बाद मै भी अपनी हिम्मत हार गया और धड़ाम की आवाज के साथ हमेशा के लिए नीचे गिर चुका हूं।अन्तिम सांसे गिनते हुए मै जमीन पर पड़ा पड़ा सोच रहा था और मुझे हंसी आ रही थी।
उफ्फ! हे मूर्ख इंसान तू ये मेरा और मेरे जैसे हजारों साथियों का अंत किए जा रहा है या खुद के विनाश की और अनवरत बढ़ रहा है।हमारे ना होने के बाद क्या करेगा मूर्ख तू इन विशाल कंक्रीट की इमारतों का और बिना पेड़ पौधो के क्या तेरा अस्तित्व संभव है?यही सब सोचते हुए मैंने अंतिम बार आसमान की तरफ देखते हुए हमेशा के लिए अपनी आंखे मूंद ली है।
प्रियंका गौड़
जयपुर,राजस्थान
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