पहली बार पति की लड़ाई -इंदु

वो सोच रहे थे आज पुनः  मुझे निरुत्तर करेंगे और झगड़ने का मौका मिल जाएगा, उन्होंने प्रश्न किया ये बताओ जब जीवन का प्रारम्भ हुआ तो पुरुष और स्त्री समान थे फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया जबकि स्त्री तो शक्ति का स्वरूप होती है?मैं मुस्काई कहा- आपको थोड़ी विज्ञान भी पढ़नी चाहिए थी। वो झेंप गये ससुराल में शायद कोई अपना नहीं होता ऐसा प्रतीत हुआ, सब शब्दों की तलवार लिए फिरते हैं, कैसे नई दुल्हन को...परास्त किया जाए! मैंने कहा ... दुनिया मात्र दो वस्तु से निर्मित है ऊर्जा और पदार्थ, पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है और स्त्री पदार्थ की। पदार्थ को यदि विकसित होना हो तो वह ऊर्जा का आधान करता है, ना की ऊर्जा पदार्थ का। ठीक इसी प्रकार जब एक स्त्री एक पुरुष का आधान करती है तो शक्ति स्वरूप हो जाती है और आने वाली पीढ़ियों अर्थात् अपनी संतानों के लिए प्रथम पूज्या हो जाती है क्योंकि वह पदार्थ और ऊर्जा दोनों की स्वामिनी होती है जबकि पुरुष मात्र ऊर्जा का ही अंश रह जाता है। पुनः उनका सवाल तब तो तुम मेरी भी पूज्य हो गई न! क्योंकि तुम तो ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो? आप भी पढ़े लिखे मूर्खो जैसी बात करते हैं आपकी ऊर्जा का अंश मैंने ग्रहण किया और शक्तिशाली हो गई तो क्या उस शक्ति का प्रयोग आप पर ही करूँ ये तो कृतघ्नता हो जाएगी मैंने कहा मैं तो तुम पर शक्ति का प्रयोग करता हूँ फिर तुम क्यों नहीं?......मेरा उत्तर सुन उनकी आँखों में आँसू आ गए. मैंने कहा..... जिसके संसर्ग मात्र से मुझमें जीवन उत्पन्न करने की क्षमता आ गई और ईश्वर से भी ऊँचा जो पद आपने मुझे प्रदान किया जिसे माता कहते हैं उसके साथ मैं विद्रोह नहीं कर सकती, उन्हें चिढ़ाते हुए मैंने कहा कि यदि शक्ति प्रयोग करना भी होगा तो मुझे क्या आवश्यकता मैं तो माता सीता की भाँति लव कुश तैयार कर दूँगी जो आपसे मेरा हिसाब किताब कर लेंगे। अपने प्रेम और मर्यादा में समस्त सृष्टि को बाँध रखना ही जीवन का सार है!


इंदु उपाध्याय
शिक्षिका,


( उपाध्याय सदन)
अनीसाबाद,पटना-02



 


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