धरा का आवरण फट गया
पर्यावरण खंड खंड हो गया !!
प्रदूषित हो रहा है प्रर्यावरण !
यही मानव के चिंता का कारण!!
प्रकृति का करने लगे विनाश !
धरा के लिये बना है अभिशाप !!
ख़त्म कर रहे है देखो हरियाली !
धधक रही है सूरज की प्याली !!
प्रदूषण ओज़ोन परत को डँस रहा !
दिन पर दिन बढ़ रहा नहीं कोई अंत !!
आओ मिलकर प्रदूषण को रोके प्रकृति की करे रक्षा !
वृक्षारोपण का प्रण ले , धरा की करे सुरक्षा !!
प्रकृति का करे सम्मान हम , स्वच्छता का रखे ध्यान !
हरित वसुधंरा की सुदंरता है , देश का अभिमान !!
पेड की पेड कट रहे नहीं रही है कही छांव !
कालोनियाँ कट रही है प्रकृति को देती घाव !!
कंक्रीट के जंगल पनप रहे नहीं आयेगी खुशहाली !
मरघट पर क्या पनपती है कभी भी हरियाली !!
प्रकृति हमारी जीवन दाता , पाल पोष कर बढ़ा करती !
आओ बचाए धरती माँ को साँसें वहीं देती !!
हमें फ़ैसला करना होगा जन जन से वृक्षारोपण करवाना है !
देश को महामारी से बचानाहोगा
हरित क्रांति लाना है !!
प्रदूषण को रोक कर करेंगे इसका सम्मान !
नहीं होने देंगे अब हम धरा का ज़रा भी अपमान !!
डॉ अलका पाण्डेय
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