पर्यावरण-इंदु

कुशीनगर  राज्य  बड़ा खुशहाल राज्य था, वहाँ के राजा अपनी प्रजा को अपनी औलाद की तरह प्यार करते थे। वे बहुत प्रतापी और वीर थे आस- पास के राजा उनसे युद्द का साहस नहीं कर सकते थे। उनकी प्रजा भी राजा को अपने पिता का सम्मान देती थी, चारो ओर खुशहाली थी कहीं कोई कमी नहीं थी। उनके राज्य भी अमन और शांति थी। राज प्रतिदिन रात में सबके सोने के बाद, अपनी प्रजा की सुध लेने वेश बदलकर जाया करते थे। ये देखना चाहते कि उनके राज्य में कोई ऐसा व्यक्ति तो नहीं जो दरिद्र हो, जो भूखे पेट सोया हो, कोई रोगी तो नहीं, कोई असहाय तो नहीं। राजा के गुप्तचर कहते महाराज आप अपनी नींद क्यों ख़राब करते हैं हम हैं न, सब तरफ़ देख लेंगे, किन्तु राजा जब-तक स्वयं नहीं जाते थे तब-तक उन्हें संतुष्टि नहीं मिलती थी। वे बड़े ख़ुश होते थे कि आज उनके कारण उनकी प्रजा कितनी ख़ुश और संतुष्ट है।
इस प्रकार सोचते- सोंचते राजा के भीतर कहीं न कहीं अहंकार ने जन्म ले लिया, कि उनका राज्य उनके कारण सम्पन्न है, वो नहीं रहेंगे, अपनी प्रजा की देखभाल नहीं करेंगे तो उनकी प्रजा नहीं रह पाएगी। राजा ने अपने नगर के चारो ओर बाग बगीचा भी लगवाया था। जिसमें फल, फूल, हर पल मुस्काते और पशु पक्षी गाते रहते। ये देख राजा बड़े आनंदित होते, एक दिन उनको दूसरे राज्य के राजा के द्वारा किसी उत्सव का निमन्त्रण आया, वे निश्चित समय पर निकल गए रास्ते में उनका बगीचा आया , वे ख़ुशी से झूम उठे अरे वाह कितना सुंदर मनोहर लग रहा है। ये सब मेरी वज़ह से है. । राजा बहुत खुश थे, फूले न समा रहे थे। तभी अचानक एक चिड़िया उधर से आई और राजा के उपर बिट कर दी। अब तो राजा क्रोध से आग बाबुला हो गए, उत्सव में न जाकर वापस आ गए और आदेश दिया कि उनके राज्य में जितने भी पेड़ पौधे हैं,  सबको जला दिया जाए..। बुद्धजीवियों ने कितना समझाया किन्तु राजा नहीं माने, अंत में वहाँ के सारे वृक्ष जला दिए गए।नतीज़ा सारे पशु पक्षी जो बच सकते थे बचे जो नहीं बच सकते थे वो जल के मर गए।
उस साल बारिस नहीं हुई नतीज़ा फसल नहीं हुई। जबतक रसद थी किसी प्रकार काम चला। दूसरे साल भी बारिश नहीं हुई अब राजा की चिंता बढ़ गई उन्होंने पुरोहित को बुलाया, पंडित जी क्या बात है, बारिश क्यों नहीं हो रही है। पंडित जी ने कहा महाराज आपने वृक्षों को काटकर घोर अपराध किया है, इसलिए अब आपके राज्य में कभी खुशहाली नहीं आएगी। हर साल सूखा पड़ेगा, ये सुनकर उस राज्य की प्रजा दूसरे राज्य में जाने लगी कि मरने से अच्छा है हम किसी और राज्य में चले। राजा ने पूछा पंडित जी कोई उपाय उन्होंने कहा "पेड़ लगाये जाए तभी खुशहाली आयेगी"!
राजा ने कहा" ये सम्भव नहीं!"तब राजन आपकी प्रजा अपनी जान बचाने दूसरे राज्य में जा रही है, आपका सारा मान, सम्मान सब नष्ट हो जाएगा। तब राजा की आंखे खुली उन्होंने मंत्री को वृक्ष लगाने का आदेश दिया । कुछ माह में गई रौनक वापस आने लगी राजा को समझ में आ गया क्रोध मे लिए गए फैसले ने कितना नुकसान किया। 
प्रकृत्ति ने 'दिखाकर आपदा का रौद्ररूप,
बता दिया प्रकृति ने मानव को अपना स्वरुप.! 
हे मानव समय रहते न सुधरे   अगर तुम, 
तुम्हारी आनेवाली पीढ़ी सहेगी कुठाराघात.!
 


इंदु उपाध्याय, पटना बिहार



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