गमले की सुखी मिट्टी ने
कर दिखाने को कुछ सोची
तड़प तड़प वो कुछ यूँ ही
सोच रही थी।
बार बार अपने अन्तर्मन को
झाँक रही थी ।।
कोई तो उस सुखी मिट्टी में
आकर जल डाले ।
तभी ने उसकी किसी ने जैसे
सुन लिया हो पुकार उसकी
आकर डाल दिया शीतल जल
उस गमले में ।
चहक उठी और महक उठी
देने लगी मिट्टी
सौंधि सौंधी अपनी खुशबू
न जाने कुछ चाहत ऐसी जाग उठी
उसे भी कुछ कर दिखाने को लगा जैसे
क्या कर दूँ मैं कुछ ऐसा
जिससे सबका मन हर्षित हो जाये
और खुशियाँ मिल जाये
इतने में न जाने उस सुखी मिट्टी के अन्दर
पौधा जैसे कहर रहा था
प्यासा वो भी मरणासन्न तक पहुँच रहा था
जल पीकर वो भी इतना प्र्फ्फूलित हो बैठा
एक कौमल से पत्तोँ की जैसे
उसके पंखुडियाँ निकल पड़े
और लगा करने अपनी प्रक्रिया शुरू
कुछ दिनो के पश्चात खिलने लगे
उस गमले में रंग बिरंगे फूल
खिले फूल को देख मेरा मन हर्षाये
और कह उठा
दूसरे की हम सोचे भला
नि:संदेह होए हम सबका का भला
खुशियाली है अगर जीवन में
तो लगाएँ आप अवश्य
एक पौधा अपने -अपने घर में।"
गली मोहल्ले घूम कर
लौट आयें कहीं से हम
थके हारे चाहे जितनी भी रहे हम
नजर पड़ती जब हरे भरे उन पौधों पर
शीतल और प्रसन्नचित हो जाता मेरा तन -मन
पर्यावरण बचाओ ,
खुशियाँ जगाओ ,
पर्यावरण की सुरक्षा ही हमारी,
सही शिक्षा का आधार है।।
पर्यावरण नहीं तो वातावरण नहीं ,
ये दोनों नहीं तो हम कहीं के नहीँ।
इसलिये पोलीथिन का करें बहिष्कार,
अपना कैरी बैग लेकर खुद जायें बाज़ार ।।
नूतन सिन्हा
पटना बिहार।
0 टिप्पणियाँ