जीवन लगातार चलता ही जा रहा था... पसीने से लथपथ , उसकी गाड़ी चलते-चलते अचानक रूक गई, उसने बोनट खोल कर देखा तो उसमें से धुआँ निकल रहा था | दूर-दूर तक पानी का नामो-निशान नहीं था , चारों तरफ सूखी जमीन पर इक्के -दुक्के कंटीले झाड़ ही नजर आ रहे थे | उसके पास चलने के सिवाय कोई चारा न था | इस उम्मीद के सहारे कि कहीं कोई मदद मिल जाए | कुछ दूर चलने पर उसे बहुमंजिला इमारतें दिखाई दी | उसके कदम और तेज हो चले थे | नजदीक पहुँचने पर उसने देखा कि कुछ मशीननुमा मानव इधर-उधर घूम रहे हैं | उसने एक व्यक्ति से पूछा, "यहाँ कहीं पानी मिलेगा क्या "? जीवन हैरान था कि कोई उसे उत्तर क्यों नहीं दे रहा?
"मेरा गला सूख रहा है .. मुझे पानी चाहिए," उसने अन्य व्यक्ति से दोबारा कहा | ये सब क्या है ? इतने असंवेदनशील इंसान ! यह सोचते-सोचते वह एकाएक बेहोश हो गया | जब उसे होश आया तो उसने स्वयं को आधुनिक मशीनों से घिरे हुए एक हॉलनुमा कमरे में पाया | उसके सामने श्वेत वस्त्र धारी एक बुजुर्ग खड़े मुस्कुरा रहे थे | आप कौन हैं ? मैं यहाँ कैसे आया? ये कौन सी जगह है? जीवन ने एक साथ कई प्रश्न कर डाले | मैं एक वैज्ञानिक हूँ और मेरी उम्र लगभग 200 वर्ष है | ये जो तुम मशीनें देख रहे हो न, वो पानी के कैप्सूल बनाने की मशीनें हैं | पानी के कैप्सूल ! जीवन को मानो विश्वास नहीं हो रहा था |
अब धरती पर पानी लगभग समाप्ति के कगार पर है | कहीं-कहीं खोजने पर ही काफी गहराई में जाकर पानी मिल पाता है | जल के अभाव में अधिकतर कीट,जीव-जन्तु, वनस्पति दम तोड़ चुके हैं | पर्यावरण असंतुलन के कारण प्रकृति अपना विकराल रूप धारण कर चुकी है | सूखा, अकाल, बाढ़, जैविक महामारी, विषाणु संक्रमण, अनगिनत रोगों का प्रकोप धीरे-धीरे मानव जाति को लील चुका है | जो मानव शेष भी हैं तो वो इतने शिथिल हो चुके हैं कि कार्य करने में असमर्थ हैं | औषधि प्रयोग के कारण बस निर्जीव के समान जीवन यातना को झेल रहे हैं | ये जो मशीनी मानव देख रहे हो न, यही सम्पूर्ण व्यवस्था को सँभाले हुए हैं | यदि जल नहीं है, वनस्पति नहीं है तो फिर शेष जीवित प्राणी क्या खाकर जीवित हैं ! जीवन के आश्चर्य की सीमा बढ़ती जा रही थी |
जिस प्रकार पानी के कैप्सूल बनाए गए हैं, वैसे ही भोजन की तृप्ति के लिए भी कैप्सूल बनाए जाते हैं जो शारीरिक जरूरतों को पूर्ण करते हैं | उनसे केवल क्षुधा को ही शान्त किया जा सकता है, शारीरिक चुस्ती, स्फूर्ति और बुद्धि को विकसित नहीं किया जा सकता | (बुजुर्ग व्यक्ति ने जवाब दिया) काश ! मानव ने लापरवाही ना बरती होती, प्रकृति की अवहेलना नहीं की होती, अपने स्वार्थ के लिये उसका दुरूपयोग ना किया होता तो आज परिस्थितियाँ प्रतिकूल नहीं होतीं | (जीवन मन ही मन सोचने लगा) "ये लड़का भी न,नींद में न जाने क्या बड़बड़ाता रहता है ? सूरज सिर पर चढ़ आया है, उठना नहीं है क्या ?"
माँ की आवाज से जीवन की नींद टूट जाती है और वह सोचना है कि शुक्र है, ये केवल सपना ही था |पर जरा सोचो, यदि यह हकीकत होता तो !
किरण बाला
(चण्डीगढ़ )
0 टिप्पणियाँ