रीता ने अपने घर के पीछे एक बगीचा बना रखा था। जिसमें सभी तरह के पेड़ थे छोटे से लेकर बड़े-बड़े दरख़्त तक.आम ,जामुन ,बेलपत्र, पीपल, अमरूद, बट-वृक्ष भी उसने अपने घर की आधी जगह पेड़ पौधों के लिए छोड़ रखी थी जब भी उसका मन अशांत होता या वह एकांत में कुछ चिंतन मनन करना चाहती तो उन पेड़ों से बातें करती हुई बड़ी अंतरंगता के साथ उनसे लिपट जाती आज फिर अपना व्यथित मन ले रीता वट वृक्ष की टहनी को अपने गले लगाती हुई बोली तुम मेरे जीवन की साधना हो, तपस्या हो,मेरे प्रेम का प्रतिफल हो तुम्हारे पास आकर भूल जाती हूं मैं अपने हर दुख दर्द को। तुम्हारी हरियाली मेरे जीवन की वो ऑक्सीजन है जो मुझे पुनर्जीवित कर देती है। तुम्हारे ऊपर आने वाला हर मौसम एक नया सबक दे कर जाता है मुझे, मैंने तुमसे दुख और सुख दोनों का महत्व सीखा है। तुम्हारी इस देह पर सूर्य जब अपने अग्नि वाणों की वर्षा करता है तब भी तुम दूसरों को अपने आंचल में छुपा कर उन्हें शीतलता प्रदान करते हो आखिर कैसे कर लेते हो यह सब धूप का तेज ताप,जाड़े की चुभती ठंड, बारिश की तेज हवाएं अपनी और आते अंधड़ क्या तुम्हें कभी बेचैन नहीं करते?..अपने जीवन में कभी हताशा उत्पन्न नहीं होती तुम्हें।
सुनते ही आज सभी पेड़ एक साथ मुस्करा कर बोल पड़े कितनी भोली हो तुम इसके बाद बसंत की सुखद हवाओं का भी आनंद भी में ही तो लेता हूं । मैं फूलों ,पक्षियों, तितलियों,मोर,भंवर और कोयल की कुहू का असली आनंद भी लेता हूँ । जब मैं सुख भोगता हूं तो दुख भोगना भी मेरा ही दायित्व है फिर जीवन से शिकायत कैसी?सुनते ही रीता अपनी सारी चिताएं भूलकर एक बार पुनः जीवित हो गई वह बोली मैं अपनी जिंदगी की हर कठिनाई से लड़ने तैयार हूँ चिंता फिकर छोड़ कर यह कहते हुए वह पेड़ों को पानी देने लगी।
तभी उसके बड़े बेटे ने बगीचे में आते हुए कहा मां अब क्या 24 घंटे का इन्हीं पेड़-पौधों के साथ बैठी रहोगी?... मैं तो कहता हूं कि काट दो अब इन पेड़ों को हम अपने मकान को बड़ा करवा लेते हैं।जूही को भी आपके इस छोटे से घर में बहुत परेशानी हो रही है। पर आप तो समझती ही नहीं आपको हमसे ज्यादा ये पेड़ - पौधे प्यारे हैं रीता ने निर्लिप्त
भाव से उसे देखते हुए जवाब दिये बिना ही पेड़ों में पानी डालना जारी रखा.अनिमेष ने चिढ़करर रीता के हाथ से पानी का पाइप लगभग छीनते हुए कहा माँ बहुत हुआ प्लीज इन सारे पेड़ों को कटवा दो कल ही मैंने मशीन वाले को बुलाया है । सारे पेड़ काटकर ले जाएगा और पैसा भी बहुत देगा तब हम इस खाली जगह में मकान आगे बढ़ा का अच्छा मकान बनवा लेंगे एक पल सुनने के बाद रीता ने कड़े शब्दों में कहा अनिमेष कान खोल कर सुन लो जिस तरह से तुम मेरे पुत्र हो उसी तरह से मैंने इन्हें भी पाला है यह भी मेरे पुत्र है और अपने पुत्र को कोई भी मां कटवा कर बाहर सड़क पर नहीं पटकती न ही बेचती है।
जीवन को देने वाले इन जीवंत पेड़ों का संरक्षण करना जरूरी है समझे मकान की मंजिल बढ़ सकती है लेकिन मैं पेड़ों की जमीन नहीं छीन सकती अब इसका हल तुम्हें स्वयं खोजना है अनिमेष एक शब्द बोले बिना ही बगीचे से बाहर निकल गया और रीता उन वृक्षों को निहारने लगी जिन के संरक्षण में बहुत सारी पशु -पक्षी पल रहे थे और पर्यावरण को का एक कोना उसके घर में पल रहा था भरपूर ऑक्सीजन के साथ।
रेखा दुबे
विदिशा मध्यप्रदेश
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