रेखा का वहम


जाह्नवी ने जल्दी-जल्दी आटा-दाल चावल के पैकेट बनाए एक कोने में चप्पल का ढेर लगा था जो उसने प्रवासी मजदूरों को देने के लिए मंगा कर रखी थी मास्क के पैकेट देखकर वह मन ही मन खुशी से झूमे जा रही थी आहा आज उसे भी 'पर' सेवा  करने का मौका मिलेगा भला हो ग्रुप एडमिन का जो उसने मैसेज कर दिया कि आप अपनी ओर से कुछ सेवा देना चाहे तो हमें यह सामान भेज सकते हैं हमारे घर पर भिजवा दें हम सब गरीबों में बटवा देंगे एक असीम आनंद की अनुभूति से भरकर उसने जल्दी-जल्दी पूरा  सामान कार में रखा और चल दी ग्रुप एडमिन के घर की तरफ सीढ़ी चढ़कर जैसे ही ऊपर पहुंची उसे एक आवाज सुनाई पड़ी सुनो दीक्षा ध्यान रहे सामान बांटते समय पेपर की न्यूज़ में हमारा नाम जरूर आ जाए और हमारी पार्टी के सदस्यों का भी आगे जाकर ये हमारी पार्टी के लिए लाभकारी होगा दीक्षा आनंद में भर कर बोली अरे आप क्यों चिंता करते हो?. यहां तो 'हल्दी लगी ना फिटकरी रंग चोखा' अपने को तो घर से 1 किलो चावल भी नहीं निकालना पड़े और पूरे शहर में हमारे नाम का डंका बज रहा कितनी सेवा करते हैं दोनों पति-पत्नी खिलखिलाते हंसते हुए उन करोड़ पतियों ने.जाह्नवी को अपनी आंखों पर लगे धूप के चश्मे को उतार कर नीचे सीढ़ियों उतरने के लिए मजबूर कर दिया।

रेखा दुबे
विदिशा



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