सिसकती हवा-आरती रॉय

वन अपनी उलझी एवं बेबस साँसों को संभालते हुए बड़बड़ा रहा था । उफ्फ कान पक गये हैं मेरे ! अब और दर्द मुझसे सहा नहीं जाता है ।   दिल की भरास होठों तक आ गई, "ओ मानव ; बंद कर व्यर्थ प्रलाप । खुद को बहुत शिक्षित सभ्य एवं विकसित कहते हो  ?""कभी हवा  का रूख भी समझा करो , क्यों भूल जाते हो तेरे बाप दादाओं ने भी मुझसे लड़ने की बहुत कोशिश की , क्या  उन्होंने विजय पाई  ?" "क्यों नहीं सोचते तेरे विकास  से हम अक्सर मर्माहत होते हैं । शिक्षा के नाम पर भाषाविद बन कर दुनिया के हर कोने में उड़ान भरते हो ! क्यों भूल जाते हो कि मैं हर जगह अपरोक्ष रूप से तेरे  साथी हूँ  ?""काश हर साँस में साथ निभाने वाले साथी  को थोड़ा प्यार थोड़ी इज्जत देना  सीख लेते ।""तुम मुझे पहचानते तक नहीं  ! मैं सबका पालक सबका संरक्षक हूँ , अपने बच्चों की तरह, हमें हमारे बच्चों से भी प्यार करने दो ।"इतना सब कहते हुए पवन की साँस फूलने लगी , पवन गुस्से की अतिरेक में और  लंबी साँस लेने लगा  । पार्क में खेल रहे बच्चे बेचैन हो  अपने अपने घरों में लौटने लगे ।
" हाय फ्रेंड्स ; तुम कुछ सुन पा रहे हो ? ऐसा लग रहा है मानों हवाओं में किसी के आँसू तैर रहे हैं ।"बच्चों की बातें सुनकर ऐसा लगा मानों किसी ने ताजे जख्म पर प्यार से मलहम लगाया हो । थोड़े से प्यार के बदले  जी भर कर प्यार बरसाना चाहा अपने बच्चों पर ।पूरी ताकत लगाने के बावजूद भी प्रदुषण को स्वयं से अलग नहीं कर पाया ।पुनः शिथिल शांत हो पलकें झपकाना तक भूल गया ।
पार्क में बैठे बुजुर्गों की बातचीत की ओर ध्यान गया । बुजुर्ग  अपने मित्रों से गपसप कर रहे थे ,बातचीत का विषय पर्यावरण था ।पवन के कान खड़े हो गए । "प्रकृति अपना संतुलन करना जानती है याद करो पहले भी महामारी फैलती थी ।""अपने बुजुर्गों को हम  अनपढ़ अज्ञानी समझते थे , अब तो आये दिन स्वाइनफ्लू एवं वर्तमान में  कोरोना वायरस की वज़ह से सारी मानव जाति स्वयं को बेबस महसूस कर रही है ।""अरे वाह ! मेरी आँहें मेरे आँसुओं को जब तुम समझते हो तो फिर विकास के नाम पर क्यों विनाश में लिप्त हो ? क्यों सारी कायनात को भयभीत कर रखा है  ? काश तुम समझ पाते कि शाकाहारी को माँसाहारी बनने पर सृष्टि का संतुलन असंभव है ।"
पवन चींख चींख कर कहना चाहता था , परंतु मानवों की सोच समझ इतनी विकसित  नहीं हुई थी कि हवा का रूख समझ सके । तभी बुजुर्गों के  ठहाकों से पुनः.चौंक उठा ! "हाहाहा...सृष्टि स्वयं को संतुलित करना जानती है । चिंता मत कोरो... ना ….।


आरती रॉय . दरभंगा 
बिहार . अप्रवासी मनीला .फिलीपींस.


 



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