तू बहति चल-रचना

गंगा दशहरा पर रचना की विशेष रचना
तू बहति चल माँ गंगा
तू इतनी चुप सी क्यों है माँ ,
क्या कोई तेरे प्रश्नो का उत्तर दे पायेगा ?
तू भगीरथ की गंगा है माँ
जिसका कर्म था तेरे प्रवाह को राह दिखाना
क्या भगीरथ का धर्म -कर्म  जनमानष भूल  जाएगा ?
पाप कितने ही 
धोये तूने,तुझको भी नहीं पता माँ ..
तू आज मैली सी क्यों है ?तुझमे पाप धोने वाला ...
क्या  तुझे मैला करने का अपना पाप धो पायेगा ?


लाशो ,नाली ,गटर ,कारखानों ,
सड़क चारो तरफ गन्दगी का ढेर ..
बहते तेरे जल मैं जाकर समां जाएगा .. 
क्या कोई महापुरुष आ कर तेरी ..
निर्मलता के इन अवरोधों को हटा पायेगा ?


तुझे बचाने की कोशिश
हुई कई -कई बार ...
क्या सत्य ,क्या असत्य
ढूढ़ते रहे सब तुझमे ही गन्दगी ...
क्या कभी जनमानष को जगा सके ,
ऐसी भी इच्छाशक्ति कोई
अपने अंदर जगा पायेगा ?
एक विनती है माँ ..
तू तो माँ है ..
नदी भी है तू ..
बहती चल ,...तू बहती चल ..
सारे पाप कर्म ..,खुद मैं समाहित ,
सबको पार कर ...तू बहती चल
प्रेम से संचित कर हमें  अपने,
तेरा ये कर्ज कोई  भी ना उतार पायेगा

स्वार्थ मैं लिपटी दुनिया .
ये राजनिति का संसार है ,
माँ भी तो है तू ...  चमा कर सबको माँ
तेरी अंतर्मन की पीड़ा को
कोई भी ना समझ पायेगा
 Rachna panchpal
Nehrugram dehradun


 



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