वहम-अलका

हम का कोई इलाज नहीं जानती हूँ पर यह मेरा वहम नही , मैं ,जानती हूँ , सौरभ कुछ छिपा रहा है । आजकल उसके व्यवहार में भी परिवर्तन आया है देर से आना , सिधे मूंह बात न करना , बिना खाये सो जाना , कुछ पूछो तो टका सा जवाब आंफिस की परेशानी है , तुम जान कर क्या करोगी . ..जैसे मैं कुछ हूँ ही नही .  पर आज तो मैं जानकर रहूँगी और नीला सौरभ की तलाशी लेने लगी , ट्रावर, अलमारी सब तलाश ली पर मिला कुछ नही , नीला सोचती कहीं कोई प्यार का चक्कर तो नही सौरभ का , जरुर यही बात है , तभी आज कल मुझसे बात नहीं कर रहा है ,बात बात पर झुँझलाना घर पर भी ध्यान नही शाम को लेट आना जरुर प्यार का मसला है , और वह बहुत बैचेन हो उठी समय कट ही नहीं रहा था सोचा आज सिधे सिधे पूछ ही लूगी  ,यह मेरा वहम ही हो तो अच्छा है , भगवान रक्षा करना ...नीला की बैचेनियां समय के साथ बढ़ती जा रही थी घड़ी ने छ: बजाये वैसे ही नीला आज एक दम सजसंवर  कर सौरभ का इंतज़ार करने लगी चाय के साथ पकोड़े भी बना लिये , सौरभ आया उसके हाथ में एक फ़ाइल थी , उसने फ़ाइल नीला को पकड़ाई और बोला चाय पिलाओ कुछ नाश्ता भी आज टेंशन से राहत मिली है । बहुत भूख लग रही है , नीला ने फ़ाईल खोल कर देखा और सब माजरा समझ गई , उसे अपने ऊपर ग्लानी होने लगी मैं भी क्या क्या वहम  पालती हूँ सौरभ कितने टेंशन में जी रहा था मैं थी फ़ालतू के वहम में समय बर्बादकर रही थी वह चाय व पकोड़े लेकर सौरभ को बुलाती हैं और  गले लग आंसू बहाते हुये कहती है सारी पीडा अकेले ही सहने का बीड़ा उठाया है ...मुझे बताना भी जरुरी नहीं समझा।

डॉ अलका पाण्डेय, मुम्‍बई



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