वहम-इंदु

नवरात्रि में नव दिन व्रत के बाद कन्या पूजन के लिए भोग बनाने और पूजा पाठ में सब व्यस्त थे।रामनवमी की गहमा -गहमी में सब भूल ही गए थे कि बूढ़ी माँ को सुबह जल्दी भूख लग जाती है।सुबह उठते के साथ ही कुल्ली करके च्यवनप्राश और चाय पीकर दातुन करने बैठ जाती हैं।एक घण्टा लगता है उनको दातुन करने में उसके बाद मन किया तो कपड़ा बदलती हैं नही मन किया तो रसोई के दरवाज़े के पास खड़ी हो जातीं हैं मतलब कुछ खाने को चाहिये...घर मे तीन बहुएँ बड़ी बहू की सासु माँ से नहीं बनती, मँझली  बहू दफ़्तर जाती हैं कामकाजी हैं।(पति की मौत के बाद )दफ्तर की छुट्टी होती तभी घर मे रहती हैं घर के काम निबटाती हैं।छोटी बहू के ऊपर सारी जिम्मेदारी होती है ज्यादातर मँझली और छोटी हीं काम मे लगी रहती हैं...!(घर मे दबदबा बड़ी और छोटी का है मँझली चुप ही रहती है)आज सुबह से मँझली काम मे लगी है कन्या पूजन के लिये भोग बना रही है छोटी थोड़ी देर उसकी मदद की फिर पति के साथ पूजा में लग गई।बड़ी श्रद्धा से मँझली काम मे लगी थी अचानक उसकी नज़र दरवाज़े के पास गई.." अरे माँ...घबराई सोंच में पड़ गई " हे भगवान माँ को क्या दूँ सारा भोग तो पूजा के लिये है.…?"
तबतक सास ने आवाज़ लगाई..." कुछ भी दो..."अब क्या करूँअचानक उसने सारे पकवान थाली में निकाला...पर ठिठक गई "नही दीदी को पता चला तो चिल्लाएंगी.." किन्तु तुरत मन को कड़ा किया...चाहे जो भी हो आज गाली सुन लुँगी पर माँ को खिलाऊंगी और सास को खिलाने बैठ गई...जो भी हो भगवान मुझे माफ़ करे आज मँझली को इतनी शांति मिली जैसे उसने माँ अम्बे को भोग खिलाया हो  विजय मुस्कान के साथ काम मे लग गई...सोचने लगी किसी न किसी को तो इस वहम को तोड़ना ही होगा न। .
इंदु उपाध्याय, पटना बिहार



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