वहम-किरण बाला

लती उसकी है, मैं क्यों माफी मांगू ? मैंने कहा था उसे, छोड़ कर जाने को... कितनी बार समझा चुका कि मैं अपनी जगह सही हूँ | कर भी क्या सकता हूँ ? वहम का कोई इलाज कभी हुआ है भला ?  जो अब होगा | वापस आए या न आए, उसकी मरजी | 
इन्हीं बातों को सोचकर वह भीतर ही कुढ़ता जा रहा था |
एक तो गलती, उस पर सीधे मुँह बात नहीं... आँखों देखा भी कभी झूठ हुआ है भला? ये तो वही बात हुई, उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे | गलती का पछतावा भी तो होना चाहिए | बिना माफी मैं भी नहीं जाने वाली | इन्हीं बातों को सोचकर वह भी घुट -घुट कर जी रही थी | वहम और अहम् का टकराव  दोनों के प्रेम पर हावी हो  चुका था | बरसों की बसी बसाई  गृहस्थी  इसी मानसिक द्वंद्व में उलझ चुकी थी, जिसके छोर को ढूँढ पाना सरल न था |


किरण बाला 
(चण्डीगढ़ )



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