वहम-नीता

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सुबह से ही मूसलाधार बारिश हो रही थी। रात होते-होते बारिश आंधी तूफान ने और भी रूद्र रूप धारण कर लिया था। सोना सुबह से ही परेशान थी एक तो पति घर पर नहीं ऊपर से ससुर जी अस्पताल में। सोना का घर कॉलोनी के आखिरी छोर पर बायपास रोड पर था उसका अस्पताल जाना बहुत जरूरी था। रात के 8:00 बजे थे ईश्वर से प्रार्थना करने के साथ साथ ससुर जी के लिए खिचड़ी तैयार कर रही थी तब तक बारिश थोड़ी हल्की हुई उसमें तुरंत अपनी स्कूटी निकाली और अस्पताल की ओर निकल पड़ी। थोड़ी दूर जाते ही स्कूटी बंद हो गई जैसे तैसे उसने फिर चालू करने की कोशिश की। सुनसान सड़क तेज बारिश फिर शुरू हो गई। जैसे तैसे उसने धक्का देकर सड़क के किनारे खड़ी की। और फिर चालू कर ने के असफल प्रयास से मायूस हो गई। स्वयं को ढांढस बंधाती हुई सोचने लगी कि मैंने कभी किसी का बुरा नहीं किया ईश्वर मेरा भी साथ बुरे समय में जरूर देगा। तभी पीछे जोर का ब्रेक लगाती हुई एक कार आकर रुकी । कार से एक शख्स उतर कर सामने खड़ा था सोना घबराई शरीर का रोम रोम कांपने लगा वह शख्स नशे में भी था। उसके पूछने पर क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं सोना भागकर सड़क के दूसरे किनारे खड़ी हो गई। उसे कई तरह के विचार मन में आने लगे । उस शख्स को यह समझते देर न लगी की गाड़ी खराब हो गई है उसने तुरंत ही अपनी गाड़ी से सामान निकाल कर सोना की स्कूटी ठीक कर दी। उधर सोना मन में कई तरह के वहम लिए हुए घबरा रही थी। उस शख्स ने तभी कहा बहन आप घबराएं ना आपको जहां जाना है मैं आपको छोड़ सकता हूं परंतु सोना विश्वास नहीं कर पा रही थी लेकिन बहन शब्द ने उसके मन में थोड़ी हिम्मत बंधा दी थी। भगवान का नाम लेती हुई उसने धन्यवाद किया। मन ही मन सोचने लगी इतनी भयानक रात में सतर्क रहना भी जरूरी है भैया मैं चली जाऊंगी मुझे थोड़े आगे अस्पताल तक ही जाना है वह शख्स बोला मैं भी वहीं जा रहा हूं मेरी मां भी हॉस्पिटल में है। तभी सोना का सारा डर और वहम निकल गया। और अस्पताल पहुंचते ही वह आत्मविश्वास से भरी हुई उस शख्स का शुक्रिया अदा करते हुए बोली मैंने आप पर शक किया मेरा वहम अब पूरी तरह दूर हो गया।

नीता चतुर्वेदी। विदिशा


 



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