सरिता प्राइमरी अध्यापिका है। एक वर्ष पहले सरिता का विवाह स्टेट बैंक आॅफ इंडिया में प्रबंधक के पद पर कार्यरत राजेश से हुआ था। राजेश सरिता को खुश रखने की हर संभव कोशिश करता।बात बात पर सरिता जानू, सरिता जानू बोल बोलकर पत्नीभक्त बना रहता। सरिता भी राजेश जैसा पति पाकर मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करती कि उसकी इच्छानुसार ऐसा पति दिया है, जो कि सरिता कोअंतर्मन से प्यार करता है, नकि उसके पैसे के कारण। एक वर्ष कैसे निकल गया,दोनों को पता ही नहीं चला। आज सुबह सात बजे सरिता विद्यालय जाने के लिए तैयार कर हो रही थी। राजेश ड्राइंग रूम में चाय पीते हुए बड़े ही प्यार से बोला, " जानू वो मुझे दो लाख का चैक तो देकर जाना।"बाल बनाते हुए सरिता ने मुड़कर राजेश की ओर देखकर हैरानी से पूछा,"दो लाख! किसलिए?सुनते ही जैसे राजेश के आत्म सम्मान को बड़ा आघात लगा। मुँह बनाकर बोला ,"अरे कुछ काम है। साड़ी का पल्ला लगाते हुए सरिता ने कहा, हाँ,ठीक है। पर ऐसा क्या काम है?राजेश कर्कश स्वर में बोला, क्या काम है। मतलब? मैं कह रहा हूँ तो कोई काम ही होगा न। आज पहली बार एक दम से राजेश का इतना खड़ूस व्यवहार वह समझ नहीं पाई मन को थोड़ा शांत कर सरलतापूर्वक बोली, हाँ, मतलब इतनी बड़ी रकम- -- सुनते ही राजेश आग बबूला होकर बीच में ही चीखने चिल्लाने लगा,मतलब, मुझे पैसों के लिए तुम्हारी खुशामद करनी होगी, कारण बताना होगा? ठीक है, चैक नहीं देना है तो यहाँ शकल दिखाने की भी जरूरत नहीं। जाओ अपने घर चली जाओ। जल्दी से तैयार होकर धाड़ से दरवाजा मारकर आफिस चला गया। सरिता रोती हुई सोफे पर बैठ समझने की नाकाम कोशिश कर रही थी कि आखिर ये क्या था ?और क्यूं था? जबकि अपने पैसे तो हमेशा ही बिना कहे घर में खर्च करती रही है।तभी बाई जो रसोई में काम करते हुए सब सुन रही थी। सरिता के पास आकर दबी आवाज में हैरानी से बोली,भैया ने तुमसे झगड़ा किया! भैया तो तुमसे बहुत प्यार करते हैं ना,फिर आज---सरिता ने आँसू पोंछते हुए बस 'हूँ' कहा।और मन ही मन घुट रही थी। यह जानकर कि अब तक खुद को धन्य समझ ईश्वर को धन्यवाद देती रही वह मात्र उसका वहम था।प्यार तो पैसे से ही था।
सुधा बसोर
वैशाली गाजियाबाद
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