वंशबेल-अलका

ज हम हमारे फ़ार्म हाउस पहूचे हवा बहुत ठंडी ठंडी चल रही थी । अश्विन बोला माँ यहाँ पर रहेंगे तो तबियत सही हो जाएगी । पर काम से फ़ुरसत ही नही ! शहर में इतनी स्वच्छ हवा कहाँ ! आपने सही काम किया अपने झाड के फल खाने का मज़ा ही कुछ और है ! हर साल हम होली यही मनाते हैं मैंने यह फ़ार्म हाउस इसलिये लिया था की मेरे बच्चो को ,प्रकृति और पेड़ों से प्यार हो वो जाने पेड़ पौधों के बारे मे जब मैंने यह फ़ॉर्म हाउस लिया था तब यहाँ का वातावरण बोहोत ही अलग था चारों तरफ़ गहन जंगल पहाड़ी और ख़ूबसूरत नदी बहती थी ! 
जब में पहली बार यहाँ आयी तो मुझे यह जगह बहुत पसंद आईं प्रकृति के क़रीब मेने इसे ख़रीद लिया और एक छोटा सा घर बनाया और फिर हम लोग यहाँ पर हर सन्डे आने लगे और अपने ही फ़ॉर्म हाउस में रहने व सब्ज़ियाँ उगाने का जो आनंद है वह शब्दों से बयां नहीं होता , पेड़ पौधों से बात करने में भी आनंद आता है वो हमारी भाषा व स्पर्श समझते है ! 
बिक्रम गढ जा कर सारे फलों के झाड़ लाती और लगती कभी कभी , मि. पाण्डेय बहुत नाराज़ होते , की तुम कितना पैसा हर सन्डे इन पेड़ों पर ख़र्च करती हो तो मैं हंस कर कहती थी , अरे यह पेड़ अपने , रहते रहते बड़े हो जाए और हम इनके फल खाएं इससे ख़ुशी की ओर क्या बात है ! बच्चे भी यह फल खाएं देखते देखते समय बीतने लगा और पेड़ बड़े होने लगी जैसे जैसे मेरे पेड़ बड़े हो रहे थे आस पास के जंगल कट रहे थे क्योंकि ये पूरा बेल्ट ही आदिवासियों का है और आदिवासी जंगलों से लकड़ियाँ काटते है और अपना चूल्हा जलाते हैं बारिश के मौसम में यह लोग 4 महीने की लकड़ियां पहले से ही काटकर सुरक्षित रख लेते हैं मुझे उनका ये झाड़ों को काटना अच्छा नहीं लगता था मैंने कई बार उनसे बात भी कि , तो कहते थे ये तो जंगल है हमारे काटने से फ़र्क नहीं पड़ता ये फिर बडे हो जायेगे पहाड़ों को भी बम लगाकर तोड़ना मैंने अपनी आँखों से देखा है जो इतना ख़ूबसूरत पहाड़ धीरे धीरे शहरों के व्यापारियों ने आकर गीट्टी मोरम  की वजह से पूरे पहाड़ ख़रीद कर व्यवसाय करने लगे है ये सब देखकर अच्छा नहीं लगता था पर मैं ख़ुश थी कि मैंने कुछ प्रकृति का काम किया और पर्यावरण के लिए मैंने कई सौ . पेड को मैंने अपने फॉर्महाउस पर लगाए ये सोच मुझे बोहोत संतुष्टि मिलती थी जैसे जैसे वह बड़े होते मैं उन्हें देखती और ख़ुश होती है आज जब मेरे पोते ये पूछ रहे थे दादी ये कौन झाड  है तो मैं उन्हें 1 एक झाड़ बता रही थी की बेटा ये आम का झाड़ , है  ये आम इसके ही फल  हैं जो आप लोग खाते हो ये सब अपने ही झाड के आम हैं ये देखो चीकू कितने लगे हुए हैं इतना अच्छा लग रहा है , इसे चीकू कहते है दादी ये भी आपने लगाया , आप को कैसे मालूम की ये झाड में कौनसा फल लगेगा तब मुझे बड़ी ख़ुशी होती , छोटा पोता अबीर कहाँ चुप रहने वाला , दादी ये भी अपने हाथों से ही लगाया था ! थोड़ा हम आगे जाते हैं में बच्चों को बताती हूँ बेटा ये देखो ये तेज़ पत्ता , पत्ते जो हम पुलाव में और सब्जी में डालते हैं ना वो तेज पत्ता यही तेज पत्ता है इसकी छाल से ही दाल चीनी निकलती है जो हम मसाले में यूज़ करते हैं ये देखो जामुन का झाड़ ये अमरूद का या अनार और देखो यह सफ़ेद जामुन येकाजू  ये बदाम ये कटहल का झाड दादी ये कटहल क्या होता है “आहन  “ने बड़ी उत्सुकता से पूछा ,   मैंने कहा बेटा कटहल भी एक तरह का फल है पकने पर हम इसको खाते हैं कच्चे की सब्ज़ी बनती है आचार बनता है मैं अभी इसमें फल लगेंगे तो मैं आपको बनाकर खिलाऊंगी इस तरह बच्चे आज बहुत ख़ुश थे वो अपनी दादी के साथ पूरा फ़ार्म हाउस घुम रहे थे थोड़ी दूर जाने पर मैने उन्हें नीम का पेड़ दिखा कर कहाँ , ये बोहोत फ़ायदे की चीज़ है इसकी पत्तियां ही नही पूरा झाड़ औषधियों से भरा हुआ है यह हमारे बहुत काम आती है
फिर मैंने उन्हें आवला , बेर का केले , सीताफल , राम फल और ऑल स्पाइसी , रुद्राक्ष , फूल , बेलपत्र , आदि के पेड़ दिखाई और उन्हें पेड़ों के महत्व के बारे में बताया की हमें क्यों पेड़ लगाना चाहिए पेड़ हमारे जीवन के लिए बहु उपयोगी है इससे ही हमें आक्सीन मिलती है । पेड़ों से बारिस आती है मैंने अपने पोतों को बहुत सारी बातें पर्यावरण सम्बन्धी समझाई !
आहन और अबीर बहुत ख़ुश , उन्हें अनमोल ख़ज़ाना मिल गया हो जैसे वो अश्विन के पास जाकर कहते हैं पापा पापा आपको मालुम है पेड नही काटना चाहिऐ और हमें पेडोको लगाते रहना चाहिऐ दादी ने आज हमें बहुत बातें बताई , पापा हमें पेड़ लगाना है चलो , तब अश्विन ने माँ , को आवाज़ दी “माँ “सम्भालो आप बताओ इन्हें झाड लगाना मेरे बस का नहीं , तब मैंने पोतों को “बीज “दिये और आम की गुठली और बोली चलो पेड लगाते हैं धरती को हरी-भरी करते है ! 
“आहन “ दादी इससे कैसे पेड बड़ा होगा तब मैंने समझाया यह बीच है इसको आज लगायेंगे ...चलो गड्डा करो ...अब पानी डालो ..बस हो गया , “अबीर “दादी पेड कहाँ है ... मैंने हंस कर कहां जब हम अगले महिने आयेंगे तब आपको पेड मिलेगा और आप देखना धीरे धीरे वह बडा होता रहेगा फिर आपको फल देगा , मैंने नौकर को बुला कर समझाया ये बच्चों ने बीज लगाये है पानी देना , मरने मत देना , जब आयेंगे तो देख कर खुशहोगे  , “अबीर दादी पानी नहीं देंगे तो “मर जायेगे , पेड भी मरते है क्या ..? हाँ बेटा जैसे हमें भूख प्यास लगती है , वैसे इन पेड़ों को भी लगती हैं ! खाना उन्हें धरती माँ देती है , पानी आकाश देता है ! जब छोटे होते हैं तो हमें देखभाल करना होती है । 
आहन और अबीर बहुत खुश थे आजउन्होने अपने हाथों से वृक्षा रोपण किया था ! और अब मुझे पता है ! वो जब जब यहाँ आयेंगे वृक्षा रोपण करके ही जायेगे ! मुझे ख़ुशी इस बात से हुई की मैंने जो वृक्ष लगाये वो मेरे बाद भी लहरायेंगे उनको प्यार करने और देखने वाले आ गये है मेरी वंश बेल बड़ती रहेगी ....निरंतर बढ़ती रहेगी ! 

डॉ अलका पाण्डेय, मुम्‍बई।


 



 


 


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