आरक्षण - अभिशाप या वरदान
आरक्षण वरदान नही अभिशाप है । यदि आरक्षण योग्यता के हिसाब से किया जाए तभी फल देगा वर्ना विनाश ही विनाश है ।
आरक्षण देश की बर्बादी और मौत का जिम्मेदार है। क्योंकि आरक्षण मांगने वाले या आरक्षित लोग कहीं ना कही सामान्य वर्ग से कमजोर होते है और ऐसे ही कमजोर लोगों के हाथों में हम अपने देश की कमान थमा देते है। जो उसको थामने लायक थे ही नहीं। बस उन्हें तो यह मौका आरक्षण के आधार पर मिल गया।
आज हमारे देश में कई इंजीनियर और डॉक्टर्स आरक्षित जाति से है। जिनकी नियुक्ति को आरक्षण का आधार बनाया गया। एक सामान्य वर्ग, सामान्य जाति के छात्र और एक आरक्षित जाति के छात्र के बीच हमेशा ही सामान्य जाति के छात्र का शोषण हुआ, चाहे स्कूल में होने वाला दाखिला हो , फीस की बात हो या अन्य प्रमाण पत्रों की। इन सभी आरक्षित जति वाले छात्र को सामान्य जाति वाले छात्र से आगे रखा जाता है। क्या सामान्य जाति वाले छात्र के पालक की आमदनी आरक्षित जाति वाले छात्र से अधिक होती है। शायद नहीं फिर भी उसे स्कूल फीस में कटौती मिलती है और साथ-ही साथ छात्रवृति भी दी जाती है। इतना ही नहीं परीक्षा में कम अंक आने पर भी सामान्य जाति वाले छात्र के अपेक्षा उसे प्राथमिकता पर लिया जाता है। जबकि सामान्य जाति वाला छात्र स्कूल की पूरी फीस भी अदा करता है और मन लगाकर पढ़ने के बाद परीक्षा में अच्छे अंकों से पास भी होता है। फिर भी उसके साथ यह नाइंसाफी सिर्फ इसलिए होती है क्योंकि वह सवर्ण जाति से वास्ता रखता है।
अच्छे अब्बल नंबरों से पास हानेे के बाबजूद सवर्ण जाति की बजाय उस व्यक्ति को वह नौकरी सिर्फ इसलिए मिल जाती है क्योंकि वह आरक्षित जाति से है। जबकि वह उस नौकरी की पात्रता नहीं रखता था, क्योंकि उसने तो यह पढ़ाई सरकार के पैसों की है, जबकि सवर्ण जाति के छात्र ने यह तक पहुंचने में अपने मां-बाप के खून पसीने की कमाई को दांव पर लगा दिया। पर मिला क्या, निररशा मां-बाप की आंखों के आंसू और सरकार की खोखली मजबूरियों का हवाला। जिनसे सिर्फ दिल भर जाता है पेट की आग और जहन में एक सवाल हमेशा शोलों की तरह दहकता रहता है कि क्या सामान्य जाति वाले हार में पैदा होना ही मेरे लिए अभिशाप बना गया?
आरक्षित डॉक्टर साहब के हाथों में अब कई मौत और जिन्दगी कैद हो। लेकिन इन्हें अंदाजा नही ंहै कि इलाज पढ़ाई से होता है आरक्षण से नहीं। अस्पताल में इलाज के दौरान होने वाली कई मौतों का जिम्मेदार आरक्षण को ही ठहराया जा सकता है। क्योंकि उन्होंने सरकार और आरक्षण पर अपना विश्वास जताया था जबकि सरकार की उपेक्षा के शिकार हुए काबिल डॉक्टर निजी अस्पतालों में अपनी सेवाएं देकर लोगों की जान बचा लेते है कारण साफ है उन डॉक्टरों ने मन लगाकर पढ़ाई की थी और मरीज की बीमारी पर काबू कर पानी की जानकारी हासिल की थी। उन्हें यह डिग्री किसी आरक्षण के आधार के आधार पर नहीं बल्कि पात्रता के आधार पर दी गयी थी।पर बेवकूफों को कौन समझाये की जान आरक्षण नहीं बचा सकते योग्यता बचा पायेगी!
भारत के भविष्य की। तो वह भी पूरी तरह से अंधकार में है। क्योंकि डॉक्टरों की ही तरह इंजीनियर्स को भी आरक्षण के आधार पर आसानी से मौका मिल जाता है। जबकि उन्हें तो यह से पास कर देते है उनमें कितनी जिंदगियां अपना बसेरा बनाकर सपना देख रही होगी अपने सुनहरे भविष्य का वही कई ऐसी लडको को आरक्षण के एक इशारे में पास कर देते है
जातिगत आरक्षण आजादी के समय देश की जरूरत थी, लेकिन अब हालात अलग हैं। समय के साथ परिस्थितियां बदली हैं। अतः अभी के अनुसार जो जरूरी है वह किया जाना चाहिए। अब समय आ गया है कि देश के विकास और प्रगति के लिए जातिगत आरक्षण को ही हटा दिया जाना चाहिए, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब यह नीति नासूर बनकर देश और समाज के लिए अभिशाप बन जाएगा। अब समय आ गया है कि देश के सारे बुद्धिजीवी, जनता और सरकार इस पर विचार मंथन करें कि इस प्रकार की आरक्षण नीति के कारण हमारा देश उन्नति की जगह कहीं अवनति की ओर तो नहीं जा रहा है? जातिगत आधार पर आरक्षण के बजाय आर्थिक रूप से लाचार व कमजोर व्यक्तियों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने पर विचार किया जाना चाहिए। आरक्षण से न कभी विकास हुआ है न होगा ,नेता स्वार्थ सिद्धि के चलते देश को बर्बाद कर रहे है मंडल कमंडल ने तो नवजवानों की जान तक ले ली " वी पी सिंह " के समय जवान बच्चो ने अपने को जीदां जलाया था । वह दिन याद करने से रुह कांप जाती है।
अलका पाडेंय (अगनिशिखा मंच)
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