अब न ऐसे गुरु और ना ही ऐसे शिष्य-इंदु

सांदिपनी ऋषि – ये भगवान कृष्ण के गुरु माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और दोस्त सुदामा के साथ इनसे शिक्षा ग्रहण की थी। शिक्षा पूरी होने के बाद कृष्ण और बलराम ने सांदीपनि से गुरु दक्षिणा मांगने के लिए कहा था, जिसपर सांदीपनि ने उनसे अपने खोया हुए पुत्र की मांग कर डाली। गुरु के इस इच्छा को पूरी करते हुए श्रीकृष्ण और बलराम ने मिलकर उनके बेटे को ढूंढ लिया।गुरु की महिमा गुरू से शिष्य ने कहा: गुरूदेव ! एक व्यक्ति ने आश्रम के लिये गाय भेंट की है।गुरू ने कहा - अच्छा हुआ । दूध पीने को मिलेगा।एक सप्ताह बाद शिष्य ने आकर गुरू से कहा: गुरू ! जिस व्यक्ति ने गाय दी थी, आज वह अपनी गाय वापिस ले गया ।गुरू ने कहा - अच्छा हुआ ! गोबर उठाने की झंझट से मुक्ति मिली।'परिस्थिति' बदले तो अपनी 'मनस्थिति' बदल लो । बस दुख सुख में बदल जायेगा.।"सुख दुख आख़िर दोनों मन के ही तो समीकरण हैं।"अंधे को मंदिर आया देखलोग हँसकर बोले -"मंदिर में दर्शन के लिए आए तो हो,पर क्या भगवान को देख पाओगे?"अंधे ने कहा -"क्या फर्क पड़ता है,मेरा भगवान तो मुझे देख लेगा."द्रष्टि नहीं द्रष्टिकोण सकारात्मक हो। जिससे भी जीवन में शिक्षा मिले वहीं गुरु गुरु और सड़क दोनों एक समान होते हैं ख़ुद वहीं रहते हैं किंतु दूसरों को मंज़िल तक पहुँचा देते हैं आप सब मेरे गुरु से कम नहीं आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद, आभार प्रणाम।



इंदु उपाध्याय,पटना



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