कहानी
न जाने क्यों रह- रह के आसमान में बिजली ऐसे कड़कड़ाती मानो अभी वो आसमान को नीचे गिरा देगी, घर जाना था ऑफिस में भीतर कुछ पता ही नहीं चल रहा था, बाहर इतनी तेज बारिश हो रही थी, कविता ने नहीं सोचा भी नहीं था कि मौसम इतना खराब हो जायगा ये देख कर उसने कैब लेना चाहा ...पर दूसरे ही पल फिजूल खर्च क्यो ...? सोचकर रुक गई...! वो बस स्टैंड की तरफ चल पड़ी कृपा थी भगवान की आज बस जल्दी आ गई ! बस में बैठते ही मन में विचारों ताना बाना, उथल पुथल होने लगा कबीर कई दिन से घर नहीं आया था । कविता और कबीर में झगड़ा हो गया, वो भी इतना कि कबीर घर छोड़कर चला गया, कविता भी अपनी अकड़ में रही, उसे रोका नहीं, कह दिया "जाओ जाओ, कहाँ जाओगे एक दिन तो, यही आना पड़ेगा,!" कबीर ने कहा "कहीं भी चला जाऊगा पर वापस नहीं आऊँगा !"
आज उसे गए तीन दिन हो गए, अब कविता का मन बहुत घबराने लगा था बार - बार बुरे ख्याल आ रहे थे , कहीं ऐसा तो नहीं कबीर ने जान... नहीं - नहीं, वो ऐसा नहीं कर सकता, इतना कमज़ोर नहीं ! कहीं बहुत दूर चला गया और नहीं आया तो, मैं कैसे रहूँगी उसके बग़ैर, गलती तो मेरी थी ,फिर भी में अकड़ गई, नहीं करना चाहिए था मुझे ऐसा। कविता बहुत घबरा रही थी, उसका स्टॉपेज कब आ गया पता नहीं चला, वह बस से उतरी आज उसके क़दम बहुत भारी लग रहे थे । किसी तरह घर पहुँची ताला खोला, मगर घर काटने को दौड़ रहा था, जी चाहता जोर जोर से रोये, थोड़ी देर सोफ़े पर आंख बंद कर बैठी रही, ख़ुद को कोसती रही, क्यों कबीर को इतना बुरा - भला कहा गलती मेरी थी, मैं फ़िज़ूलख़र्ची करती हूँ। वह मुझे समझा रहा था कि हमारी नई- नई शादी हुई है, हमें अपना घर लेना है थोड़ा पैसा बचाना चाहिए ,अभी फ़िज़ूल खर्च ना करूँ, मैं अपनी धुन में इतना ख़र्च कर रही थी, कहा उसने अपना घर हो जाए फिर करना, एक दो साल मन को मार लो , क्या ग़लत कहा था अभी हमें अपनी गृहस्थी बसानी है किन्तु मैंने उसे ही उल्टा महाभारत खड़ा कर दिया और झगड़ा किया, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए! कबीर को फ़ोन लगाया तो उसका फ़ोन बंद था अब तो वो और घबरा गई अब किसी काम में मन नहीं लग रहा था उसने उसके दोस्तों को फ़ोन लगाया किसी को कुछ पता नहीं था।
कविता क्या करे उसका दिल बैठा जा रहा था अब कहाँ जाए, .उसने सोचा कल उसके ऑफ़िस जाऊंगी और वहाँ से उसको सीधे घर ले आऊँगी, यह सोचते ही उसको थोड़ी सी राहत मिली वह अंदर गई, खाना बनाने का मन नहीं किया, चाय बनायी और उसके साथ दो तीन बिस्कुट लिया, सिर में बहुत दर्द था, वह बार - बार फ़ोन लगा रही थी, कबीर से बात करना चाह रही थी पर उसका फ़ोन बंद आ रहा था, तभी उसने सोचा व्हाट्सप्प करती हूँ,. " प्रिय जान मुझे अपनी गलती का एहसास है, मुझे माफ़ कर दो,तुम सही कह ,रहे थे, मुझे फ़िज़ूल खर्ची नहीं करनी चाहिए, मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ तुम्हारे सपनों को पूरा करने में तुम्हारा साथ दूँगी , प्लीज़ कबीर जहाँ कही भी हो अब लौट आओ ....!"
न जाने कब उसकी आंख लग गई, सुबह उठते ही वह कबीर के ऑफ़िस में गई, पता चला कि कबीर ऑफ़िस आया ही नहीं,अब तो उसके दिल की धड़कन और बढ़ गई, वो कबीर के बॉस के केविन में गई तो पता चला कि कबीर ऑफिस के काम से जर्मनी गया है। कविता को समझ में आ गया कि कबीर का फ़ोन इसलिए नहीं लग रहा है..!
कविता का डर कुछ कम हो गया..मन भी हल्का हो गया। वह अपने ऑफ़िस गई किसी तरह पूरा दिन बिताया, शाम को घर लौटी तो उसने बड़े प्यार से कबीर के लिए मैसेज रिकॉर्ड किया..." कबीर मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, मेरी नादानी को तुम नज़रअंदाज़ कर दो न प्लीज़ , जहाँ कहीं भी हों" अब लौट आओ साजन ” “तुम्हारे बिना मैं एक पल भी नहीं रह सकती, मन नहीं लग रहा है, बहुत डर लग रहा है, कैसे- कैसे खयाल आ रहे हैं। मेरा दिल बैठा जा रहा है
“अब आ आओ ना साजन “
माफ़ कर दो मुझे, फ़ोन करो ,
मैं अब कभी झगड़ा नहीं करुँगी...
जितनी उसकी आँखें बरस रही थीं इतनी ही बारिश बाहर भी हो रही थी.. जैसे दोनों एक ही तूफ़ान से गुजर रहे हों,
कविता की आँखों से आँसू अविरल बह रहे थे ...
उसे अचानक अपने सिर पर किसी का हाथ महसूस हुआ वो काँप गई, डरकर धीरे से सिर उठाया, तो देखा सामने कबीर मंद - मंद मुस्करा रहा था मीठी मुस्कान के साथ ...बोला "मैं आ गया कविता ...!"
मेरे बिना रह नहीं सकती हो तो झगड़ती क्यों हो.... हमने शादी इसलिए तो नहीं की है कि हम झगड़ते रहें और अपनी ज़िंदगी ख़राब कर लें। मैं इस समय वचन देता हूँ कि मैं तुम्हें किसी भी बात के लिए नहीं टोकूगा। मैंने बहुत सोचा और यह निर्णय किया कि मुझे तुम्हारी इच्छाओं को मारने का कोई अधिकार नहीं । कविता कबीर के सीने से लगकर बोली "नहीं तुम ठीक कह रहे थे.... ।" मैं तुम्हारी हर बात मानूँगी बस तुम मेरे साथ रहो... और कुछ नहीं चाहिए मुझे सिवा तुम्हारे प्यार के..।"
इंदु उपाध्याय
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