अलका के मुक्‍तक

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पहले  असली खबरे छापा करते थे  अख़बार !
अब मोल भाव कर गरम  खबरे छापते अखवार !!
समाचार का चेहरा अब बदरंग हो  चला है !
सियासती महकमें के गुलाम बने है , अखवार !!


आज़ादी का क्या मतलब होता है 
तुमने तो ग़लत ही समझा होता है 
मनमानी आजादी नहीं होती है 
मिलजुल कर रहना ही आज़ादी है !!


खामखां   हमरा दिल उन पर शक करता रहा !
धोंखा तो उनका दिल ही  हमें  देता रहा !!
वो तो दिल के हाथों मजबूर रहे होंगे !
हम ही न समझे , वो ईशारा देता रहा !!


कुछ कहती हूँ तो  बेअदब कह जाते है लोग !
ख़ामोश रहूँ तो मगरुर कह जाते है लोग !!
ज़िंदगी को तमाशा बना जाते है लोग !
चेहरे पे कई चेहरे  मढतें  है लोग 

अलका पाण्डेय- मुम्बई 
अग्निशिखा मंच



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