चाँदनी रात में -इंदु

अच्छा एक बात बोलूँ क्या...
सुनोगे..?


सुनो...
ना .. 


न जाने क्यों... सदियों से
इंतज़ार रहा..! 
हृदय से... जैसे मैंने नहीं
कहा हो..! 
झिलमिल सितारों के बीच
चाँदनी रात में,
हम दोनों ने ही कहा हो ये.. 
क्या तुम्हें भी ये एहसास
होता है...?
महसूस करते हो क्या...
कभी.. ? 
झिझकते हो कहने से शायद...
या डरते हो कहने से...?


सुनो ना...


भरोसा है मुझे, तुम्हारी ये.. ज़मी..
और आसमां भी तुम्हारा हीं तो है...


एक बात.. बताऊँ
यक़ीन करोगे... न.? 
एक तुमसे ही तो मेरी ज़िंदगी में
कुछ रंग है.. 
आज मैं बुलाना चाहती
हूँ तुम्हें, 
क्या आओगे, मिलने मुझसे..
 आ पाओगे क्या ....??
 चाँदनी रात पूर्णिमा की
और पूरे तुम.. 
शीतल, मोहक.... वादा दोगे क्या...?
आने का.. 
किन्तु ये मुझे वादा तोड़ोगे तो
नहीं न...??


इंदु उपाध्याय



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