चॉंदनी रात में -अलका

चांदनी रात में


चांदनी रात में , झुरमुठ के साये में !
हम दोनो तारों के संग बतियाते थे !!
हल्का हल्का श्यामल उजाला मन को लुभाता था !
अल्फ़ाज़ लबों पर आकर ठहर जाते थे !!
आंखो आंखो से बात होती थी चांदनी रात में !


शर्माती थी नजरे , पलके उठती गिरती थी !
पसरी थी रात सुहानी चांदनी बिखरी थीं !!
पवन का झोंका ले आई महक रजनीगंधा की !
हरि घास पर मोती सी चमक रही ओंस बूंदे !!
आई मिलन की घडी चांदनी रात में!!


गूंज रही बागो में भवरों की किलकारियां !
झूम रही है पेडो पर फूलो की डालियां !!
चांदनी रात में फैली भोर कीउजालियां !
चलो उठो चलते है घर देगी बहुत मां गालियां !!
खिला खिला है चांद , ढल रही है रात !!
चांदनी रात का नशा यू छाया जैसे बज रही शहनाईयां !!
चांदनी रात में , तारों की बारात में !
चांदनी रात में

डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई




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