एकांकी  - रोटी 

एक झोपड़ी के बहार भीड़ लगी थी , सब आपस में काना फूली कर रहे थे अंदर एक बुढीयां की लाश पड़ी थी एक औरत जिसका नाम कजरी  था आगे आई और ज़ोर से चिल्लाई क्या तमाशा लगा रखा जंश्न नहीं हो रहा , एक औरत मरी है औरत , माँ बहन ,  बेटी मारी गई है रोटी के लिए जब ज़िंदा थी तुम्हारे सामने पेट की दुहाई माँग रही थी , तब कहाँ थे तुम लोग एक दिन का राशन न दे सके , मैं आठ दिन के लिए मायके गई थी मुझे क्या पता था ...
पता नहीं कब प्राण पखेरु उड गयें ..बेचारी 
तुम सब यहीं रहते हो न .,
सबके चेहरे पर शर्मिंदगी छाई थी , 
तब कजरी बोली अभी शर्म है तो कफ़न का इंतज़ाम करो ..
तभी एक आदमी सामने आता है 
कजरी से कहता है हम कफ़न का इंतज़ाम कर देंगे पर माँ जी के बेटे को खबर करनी चाहिए वो आ जाए तो .. 
चुप ख़बरदार किसी ने उस बदमाश को खबर की तो जो जितें जी माँ का न हो सका ..
उसे मरने पर क्यों बुलाया जाए .....? 
कोरोना के माहौल में एक बार माँ को फ़ोन कर पूछ न सका की माँ कैसी है काम पर नहीं जा पाती होगी कैसे रहती है ...
मेरे पास बैठ कर बुढ़िया उस नासपीटे के लिए रोती थी !
कजरी रोती जा रही थी और 
बुढीया के बेटे को कोस रही थी 
तब तक एक दो महिलाएँ और आ गई , 
एक औरत झोपड़ी में जाती है और एक काग़ज़ ले कर बहार आती है ..
सबके सामने पढ़ती है .,
काग़ज़ में लिखा था .,
मैं मेरी झोपड़ी और आस पास की मेरी जगह मैं बुजुर्गों के कल्याण के लिए दे कर जाती हूँ 
इसकी देखभाल कजरी करेगी
सब लोग सकते में आ गए 
कजरी —आगे पढो 
औरत - मेरी जगह में मेरे बेटे का कोई हक़ नहीं है न मेरी अर्थी पर 
मैंने मेरा शरीर दान कर दिया है 
इस नम्बर पर फ़ोन कर देना वह लोग आ कर ले जायेगे ! 
किसी को कफ़न या और किसी चीज़ का इंतज़ाम नहीं करना है !
हो सके तो यह जगह सुदंर व वृद्धों के सुविधाओं के देखते हुए बनाया जाए ...
कजरी - नम्बर दे फ़ोन करु 
कजरी - नम्बर ले कर फ़ोन करती है । 
कजरी - आगे क्या लिखा है 
औरत - मेरे पास पैसा तो नहीं हैं पर मेरा मंगल सूत्र व दो चूड़ी हैं जो बेच कर काम शुरु करो ..,
और इसका नाम रखना 
“तड़पती ममता का आसरा “
सबकी सिसकियाँ सुनाई देती है 
तभी एम्बुलेंस की आवाज़ आती है !
दो आदमी आते है ..
खाना पुरी करते है व कजरी 
साइन कर कहती है ..
बुढीया ने हमें आख़री काम भी न करने दिया बड़ी खुद्दार निकली 
भूखी मर गई पर जाते जाते लोगों को रोटी दे गई ...
सब माँ जी को जाते देखते है । 
माँ जी एक विचार चिंतन सबके दिलों में छोड़ चली गई ..
कजरी - सुना आप लोगों ने यह काम मुझ से नहीं होगा आप सब को साथ रहना है 
तब तक सब देखते है कालू सुतार एक बोर्ड मांजी की फ़ोटो व “ तड़पती ममता का आश्रय “ 
जिनका कोई नही उनके हम है 
आओ और प्यार दो प्यार लो 
बेसहारो का सहारा , रोटी का आश्रय...
सब के  मुरझाये  चेहरे खिल गये 
सबने मिलकर बोर्ड टांगा 
कजरी - नेक काम में देर नहीं आप सब मिल कर झोपड़ी साफ़ करो ..
अंदर जाते है तो देखते है पहले से ही झोपड़ी में चार पंलग अलमारी  सारी व्यवस्था की हुई है 
एक दम साफ़ सुथरा सब कर के ही बुढीया गई रे ...कजरी ज़ोर से चिल्लाई ..
कजरी - सबके सामने में शपथ लेती हूँ वे ही लोग यहाँ रहेंगे जो बच्चों से सताए है ..
अब सब अपने घर जाओ कल पाँच बजे मिटींग रखती हूँ जो काम करने में इच्छा रखते हो आ जाना ! 
सबने माँ जी को प्रणाम किया वह चले गये ।


डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई



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