बहुत दुख के साथ कहना पड़ता है आज वृद्धों की स्थिति समाज में परिवार में चिंता जनक है । वद्धा आश्रमों की बढ़ती जनसंख्या को देखकर हम अंदाज़ा लगा सकते है ! पहले घरों में बुजुर्गों का सम्मान होता था कोई उनकी बात टाल नहीं सकता था बच्चे “इतिहास और धार्मिक “कहानियाँ दादा , दादी, नाना ,नानी से सुनते , रोज़ रात परियों की कहनी सुन कर सोते संयुक्त परिवार में बच्चे कैसे बढ़े हो जाते माँ बाप को चिंता नहीं रहती थी ! सब लोग घर रे हंसबोल कर बडो के डर से मिल जुल ख़ुश रहते थे !परन्तु आज हम पढलिख कर आधुनिक हो गये है।और अपने संस्कार भूल गये जिन मां बाप ने हमें बढ़ा किया पढ़ाया उँगली पकड़ कर चलना सिखाया , आजबड़ा बन कर वे उन्हें भूल जाते है , जिनकी वजह से उनका वजूद है । उनकी दौलत तो चाहिए परन्तु देखभाल नहीं करनी है ...वो महा मूर्ख है जो की दौलत और ज्ञान की कद्र नहीं कर पाते पहचान नहीं है अंधे है ..
बुजुर्गों के घर में रहने से कितने फायदें है वह सोच नहीं पातें घर की सुरक्षा , नौकर यदि है तो उनपर नजर , बच्चों की सुरक्षा, बच्चों में सही संस्कार, जो लाख रुपये खर्च कर भी नही आते , नाना नानी , दादा दादी वो कोहिनूर हिरे का काम करते है जो शायद हम सोच भी नहीं सकते ।
बच्चों को इतना ज्ञान , खेल खेल में दे देते है की वह एक अमिट छाप मस्तिष्क में जम जाती है और हमेशा याद रहती है । याद रखना होगा समाज को कि आज हम जो करेंगे भविष्य में वही रिपीट होगा , आज मुम्बई में हम लड़के के लिए लड़की देखने जाते हैं तो लड़की कहती है घर में डस्टबीन ( बुज़ुर्ग) कितने है , यह हकिकत है कुछ समाज में यह चल रहा है , लड़की पहले ही साफ़ कह देती है , डस्डबिन घर में है , तो लड़की कहती है अलग रहोगे तो शादी करुगीनही तो नहीं .....मैं तो लड़कों को यही कहती हूँ उस लड़की से शादी नहीं करनी चाहिए और उल्टा पूछना चाहिएतुम्हारे घर में कितने है , जब तुम मेरे माँ बाप को पहले ही कचरे का डब्बा बना रही हो तो बाद में क्या करोगी ....?और तो और लड़की माँ बाप भी नही समझाते या अपने को डस्टबीन नहीं मानते ...यह हकिकत है आज की बहुत देखा है मैंने ज़रा भी झूठ नहीं है दिल तो करता उन लड़कियों के गाल पर दो तमाचे बजा दूँ , और पूछूँ तुम्हारे माँ बाप नहीं है , भाई की शादी करोगी की नही ! पर कौन समझाये सोशल मीडिया के अंधों को शायद वो कभी बुढे नहीं होंगे ...वुजुर्ग घर में औषधि का काम करते है , कितनी समस्याओं का निराकरण चुटकियों में कर देते है , बुजुर्ग कबाड़ नहीं है ज्ञान का भंडार है , हमारी लाइफ़ लाइन है ।मैं सब से यही कहूगी सोच बदलना होगा । अमीर तो हो गये पर संस्कार भूल गये ...वृद्धाश्रमों में हमेशा अमीरों के माँ बाप जाते है , उन्हें रोज़ मदिरा पार्टी और स्पेस चाहिए होता है ! गरीब तो अपने साथ साथ माँ बाप की सेवा करते है । बुजुर्गों का सम्मान हमारा संस्कार है उसे मत भूलो बुजुर्ग घर में है हम बेफ़िक्री से रहते है हमें आशिष मिलता रहता है।बुजुर्ग कबाड़ नहीं है वो हमारी अमूल्य निधि है उन्हें प्यार से सम्भालना , हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी दारी है । हमारी अमूल्य निधी , हमारे पास रखना व सम्मान देना चाहिए । आप का जीवन महक उठेगा
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
मौलिक
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