घर के बुजुर्ग कबाड़ की वस्तु नहीं ज्ञान के भंडार हैं-किरण बाला


भगवान बस किसी को बुढ़ापा न दिखाए, ऐसे ही चलते फिरते बुला ले..ऐसा अक्सर लोगों को कहते सुनते देखा जा सकता है । इसी कथन से वस्तुत: स्थिति  स्पष्ट हो जाती है कि आज समाज में बुजुर्गो की क्या दशा है ? सत्य को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती, आपके अपने घर पड़ोस में ही बुजुर्गों की दशा को व्यक्त करते हुए असंख्य उदाहरण मिल जाएंगे । ये कैसी विडम्बना  है ! जिनकी अंगुली थामे और पदचिन्हों पर चलते हुए हम समर्थवान बने हैं, आज उन्हें ही आउटडेट कहते हुए उपेक्षित कर दिया जाता है । जिनके दिशा निर्देश के बिना हम एक कदम भी चलने से डरते थे आज  उनका परामर्श तक लेना भूल जाते हैं। किसी कबाड़ की तरह उन्हें घर के एक छोटे से कोने में डाल दिया जाता है । बिना कोई प्रतिक्रिया दिखाए कोई रह पाए तो ठीक, नहीं तो उनसे छुटकारा पाने के अन्य उपाय खोजे जाते हैं। कहीं - कहीं तो मानवता की सभी हदें पार कर उनसे अमानवीय व्यवहार किया जाता है । मेरा यह कहने का तात्पर्य कदापि नहीं है कि सभी जगह ऐसा हो रहा है । आज भी ऐसे बहुत से लोग है जो बुजुर्गों को आदर सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ते । किन्तु आज की जीवनशैली के संदर्भ में जहाँ प्रत्येक स्वयं को दूसरे से सर्वोपरि समझता है , अपनी बात को ही तर्क पूर्ण मानते हुए किसी की बात को अधिक महत्व नहीं देना चाहता , ऐसी स्थिति में तकरार व तनाव की परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।  
बुजुर्ग ज्ञान का भंडार होते हैं । भले ही आज कोई कितना भी ज्ञान अर्जित कर ले लेकिन अनुभव बरसों की मेहनत से ही प्राप्त होता है ।बिना अनुभव के ज्ञान का महत्त्वहीन  होता है । बुजुर्ग हमारी परम्परा , संस्कृति तथा  अर्जित अनुभव का संग्रह होते हैं जो कि हमारे मार्ग में आने वाली विषम परिस्थितियों में हमें संबल प्रदान करते हैं। बुजुर्ग घर की रीढ़ होते हैं जिस पर घर की  समस्त व्यवस्थाएं टिकी होती हैं । विषम परिस्थितियों में उनके अनुभव ही काम आते हैं । एक कुशल संरक्षक की तरह सभी कार्य सुचारू रूप से चलाने में हमारी सहायता करते हैं । जिस घर में बुजुर्गो का आदर सत्कार होता है वह घर सदैव खुशहाल रहता है । शुद्ध आचार , विचार आहार जैसे गुण उन्हीं की छत्रछाया में ही पल्लवित होते हैं । नैतिक मूल्य , संस्कार , ध्यात्मिकता जैसे जीवन मूल्य बालक उन्हीं के संरक्षण में सीखता है । आज की इस भागदौड़ की जिंदगी में हम स्वयं में इतना उलझे रहते हैं कि अपने बच्चों के लिए भी वक़्त नहीं निकाल पाते , ऐसे में बुजुर्ग ही अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर उनका मार्ग प्रशस्त करते हैं । आज के तकनीकी युग में भले ही उन्हें तकनीकी ज्ञान न हो किन्तु अपने अनुभव के आधार पर समस्त समस्याओं का निदान सरलता से कर देते है।
पीढ़ी अंतराल की समस्या तो हमेशा ही सबके समक्ष बनी रहती है , जो कि अहम् के टकराव का कारण बनती है । इससे बचने के लिए बुजुर्गो को भी बच्चों के नजरिए से सोचना होगा और बच्चों को भी बुजुर्गों का सम्मान  करते हुए उनकी भावनाओं को समझना होगा । अपने विचारों को रखते हुए संयम का पालन करना होगा न कि विचारों को जबरदस्ती किसी पर थोपा जाए । आपसी तालमेल से ही इस समस्या का समाधान किया जा  सकता है । बुजुर्ग सिर्फ़ सम्मान और प्रेम के भूखे होते हैं ,उनके शुभाशीष मात्र से ही हम सफलता को प्राप्त करते हैं ।बुजुर्गों की अवहेलना से सिर्फ़ अपना ही नुकसान होता है । 


 किरण बाला, चण्डीगढ़



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