हरेला -रेनू अग्रवाल



त्यौहारों का सीधा संबंध प्रकृति से या हरियाली से जोड़ा जाता है।हमारे कुमायूं में लोक मानस के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है हरियाऊ यानी हरेले का त्यौहार। जेठ की तपती दुपहरी से झुलसे वातावरण में सावन के आते ही हरियाली आ जाती है। त्यौहार का संबंध खेती और किसान से है जिससे घर में सुख शांति और समृद्धि हो ।धरती हरी भरी हो खेतों में अच्छी फसल हो इन शुभकामनाओं के लिए  ये त्यौहार मनाया जाता है ।वृक्षों को अनिवार्य रूप से लगाने की ये रीति बनाई गई है ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए ये धरती सुंदर और सुरक्षित रहे।फसलों की उपज का उमंग है ये त्यौहार ।प्रकृति को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता भी दिखती है।भीगी ज़मीं पर सेंव खुबानी अनार तमाम तरह के पौधों को रोपा जाता है।
                 फसलों की उपज का उमंग है ये त्यौहार ।हरेला वर्ष में तीन बार  मनाया जाता है। प्रथम बार चैत मास के प्रथम दिन बोया जाता है ।नवें दिन अर्थात् नवमी पर काटा जाता है । गर्मी की ऋतु के आने का प्रतीक है। दूसरा अश्विन मास को नवरात्रि के पहले दिन बोया जाता है तथा दशहरे के दिन काटा जाता है जो सर्दी कि ऋतु के आने का प्रतीक है ।तीसरा हरेला सावन मास लगने का प्रतीक है जो सबमें अनूठा है और चारों ओर फैली हरियाली की वजह से बहुत खूबसूरत और महत्वपूर्ण भी है।इस प्रकार ऋतुओं के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला हरेला सात जुलाई को बोया जाता है और सात दिन बाद काटा जाता है ।इसमें सात अनाज बोने की रीत भी है ।हरेला के दिन घर में ब्राह्मण या परिवार का ज्येष्ठ व्यक्ति पूजा अर्चना करके हरेला को आशिर्वाद स्वरूप में सदस्यों को स्पर्श करते हैं और देवताओं को अर्पित करते हुए ये बोलते हैं..
रोग शोक निवारणार्थ ,प्राण रक्षक वनस्पते ।
ईदम  गच्छ नमस्तेस्तू ,हर देव  नमोस्तुते  ।
इस प्रकार  पूजन अर्चना के बाद अति सुंदर प्रकार से सब लोग ये गाते भी हैं....
लाग हरयाव ,लाग दशैं,लाग बगवाव।
जी रया, जागी रया,
या दिन , य  महैडन के नित- नित 
भ्यटऐंन  रया 
बेर जस फल जया 
दुब जस  पंगुर  जया 
स्याव जसि बुद्धि है जौ 
स्युं जस तरान ऐ जौ। 
             आज हम आधुनिक होने और शहरी होने की प्रक्रिया में कुछ खोते जा रहे हैं।ये तीज़ त्यौहार, ये प्रेम की धारा ,ये धरती से फसल उग जाने की मशक्कत हमारे पुरखों की विरासत है।इस पहाड़ी प्रदेश के भाग में बुजुर्ग अभी भी पहाड़  की  थात को सीने से लगाकर रखें हैं  ।हमारे पूर्वज हरेला पर्व के रूप में पर्यावरण संरक्षण का जो महान संदेश दे गए हैं ये पहाड़ उनकी और हमारे पूर्वजों की सफलता में जवां होता रहेगा ।ज़रूरत है आज का युवा आगे आए और देश की धरोहर को संजोकर रखें।
 रेनू अग्रवाल 
आशियाना लखनऊ।


 



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