कलम की ताकत का अंदाजा,
अब लगा ले ऐ जमाने ।
सिर्फ श्रृंगार ही नहीं लिखती,
गाती है ये वीरता के भी तराने।
युद्ध भूमि में जब ये उतरे,
तो नतमस्तक होती है कटार।
शस्त्र निशाना चूक भी जाए,
पर खाली न जाए इसका वार।
करना ना गुस्ताखी कभी,
तू आ ना जाना आजमाने।
ये वो ही शमा है प्यारे,
जो जलाती है परवाने।
साहसी कलम, खुले विचार
चाहती नहीं ये बंदिशे।
प्यार के पैगाम दो,
क्यों रखते हो रंजिशे।
दर्द दिल में होता है,
उठती है एक टीस भी,
कैसे कलम सह पाये,
लेश मात्र बंदिश भी।
कैदी कलम जब हो जाए
इंसाफ फिर मांगेगा कौन?
फिर तो कुछ यूं समझिए,
कौरव सभा में ज्यू पितामह मोैन।
भुगतेंगी पीढ़ियां खामियाजा,
प्रश्न फिर हमसे भी होगा।
आज अगर कलम कैद हुई ,
तो सोचिए फिर क्या जवाब होगा?
बंदूक से भी घातक बहुत ,
होता कलम का वार है ।
कलम गर कैदी हुई तो ,
समझो बहुत बड़ी हार है।
हार ये मंजूर नहीं,
चाहे देनी पड़े ये जान।
कलम ही है ताकत हमारी
कलम से ही है सम्मान।
स्वरचित बा अप्रकाशित रचना
सरस्वती उनियाल अध्यापिका
विकास नगर देहरादून।
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