कीचड़ में कमल
सरपट मैदान नहीं,
गड्ढे हैं, पहाड़ी भी हैं।
मन को लुभाती
हरियाली ही नहीं
बिन पानी
मरुभूमि भी है।
जीवन के इस कठिन सफर में साहस तेरा इंधन है,
खत्म ना होने देना इसको
बढ़ना तुझको निरंतर हैं।
ईश्वर ने अपनी सब रचनाओं से बनाया क्यों तुझको अलग
विश्वास तो कर उस पर थोड़ा
यह गुढ़ रहस्य फिर आएगा समझ।
स्वार्थ भरी इस दुनिया में
निर्मल ह्रदय ही तो हथियार है। कर प्रयास तू प्रतिपल प्रतिक्षण उस पर ही तेरा अधिकार है।
कैसी दुर्बलता कैसा डर
बढ़ते जा तू हर पल निडर
झूठ से भरे इस कीचड़ जगत में खिलना है तुझको बन कर कमल।
स्वरचित
✍️✍️✍️अनुभा जैन
विदिशा मप्र
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