पात्र परिचय
परिमल (मध्यम वर्गीय परिवार का मुखिया)
हेमलता (परिमल की पत्नी)
रजत (परिमल का पुत्र)
शंकर प्रसाद (मकान मालिक)
धर्मपाल (दुकानदार)
पर्दा उठता है.….
सामने बैठक का दृश्य नजर आता है । बैंत की चार कुर्सियाँ , उनके मध्य लकड़ी की मेज और एक कोने में रखा हुआ दीवान । फर्श पर कुछ बिखरे हुए खिलौने दिखाई दे रहे हैं , जिनसे रजत खेल रहा है। दीवान पर बैठी हेमलता स्वेटर बुन रही है। परिमल सक्सेना कमरे में तनाव की मुद्रा में टहलते हुए दिखाई दे रहे हैं।
हेमलता - अब आगे के बारे में क्या सोचा है आपने ? घर का गुजारा कैसे चलेगा ?
परिमल - अब अस्थाई नौकरी का क्या ? आज है कल नहीं ।कोशिश कर रहा हूँ न, नई नौकरी की । आज के समय में नौकरी मिलना आसान थोड़े ही है । अपना कोई काम भी नहीं कर सकता । उसके लिए भी तो रुपयों की आवश्यकता है।
हेमलता - सुबह मकान मालिक का फोन आया था। कह रहा था कि आज शाम को ही घर पर आएगा । तीन महीनों से तो उसे टालते आए हैं ,जाने अब वो कैसा व्यवहार करेगा ?
परिमल - अगर मकान खाली करने को कहा तो ? कहाँ जाऊंगा, तुम सब को लेकर? नहीं नहीं ,कुछ तो करना ही होगा (अपने आप को सांत्वना देते हुए उसने कहा)। तभी खेलते - खेलते रजत का घोड़ा टूट जाता है वह उसे जोड़ने की कई बार
कोशिश करता है , किंतु सही ना होने पर रोने लगता है ।
रजत- मुझे नए वाला घोड़ा चाहिए ये टूट गया है औ चल भी नहींरहा । मुझे नया घोड़ा चाहिए , नया घोड़ा चाहिए ...
हेमलता - जब मेले में जाएंगे तब नया दिला देंगे , अच्छे बच्चे ज़िद नहीं करते ।(हेमलता ने रजत को टालते हुए कहा)
रजत - माँ ! खाना दो ना , बहुत भूख लगी है । (रजत का ध्यान अचानक हटकर रोटी पर आ गया था) ।
(हेमलता स्वेटर बुनना छोड़ रसोई घर में चली आती है और कुछ देर के बाद थाली में चार रोटियाँ लिए हुए आती है।)
हेमलता -जल्दी से सब हाथ मुँह धो लो और खाना खा लो ।
परिमल - यह क्या, आज फिर चटनी के साथ रोटी ?
हेमलता - जो कुछ है वह यही है, अब तो आटा भी खत्म हो गया है। कल के खाने का जुगाड़ कैसे होगा ?(हेमलता चिंतित
स्वर में बोलती है)
परिमल -हम मध्यम वर्गीय परिवारों की यही तो एक कहानी है । दो वक्त की रोटी के लिए अथक परिश्रम करने केबावजूद सुकून के पल कभी नसीब नहीं होते । हम से बढ़िया तो निम्न वर्ग के लोग हैं जिन्हें कम से कम सरकार से लाभ तो मिल जाता है। सस्ते दामों पर अनाज और अन्य जरूरी सामान मिल जाते हैं और हम जैसे लोग ,कहीं हाथ भी नहीं पसार सकते ।लोग क्या कहेंगे ? अभी तक तो बड़ा बाबू बना फिरता था , अब भीख माँगने तक की नौबत आन पड़ी है ,जग हँसाई होगी सो अलग ।
(वह रोटी खाने की कोशिश करता है किंतु चिंता के कारण उसके गले से नीचे नहीं उतरती । तुम खा लो ,कहकर वह थाली हेमलता की ओरकर देता है )।तभी दरवाजे पर लगी घंटी बजती है और शंकर प्रसाद भीतर प्रवेश करते हैं ।
शंकर प्रसाद - देखो भाई , मैं कोई लाग लपेट वाली बात नहीं करता । सीधे स्पष्ट शब्दों में कह रहा हूँ कि मुझे अपना किराया चाहिए बस ।तीन महीने हो गए इंतजार करते हुए , अब या तो किराया दो या फिर कोई दूसरा मकान खोजो ।
परिमल - आप निश्चित रहें नया काम मिलते ही आप का किराया जल्दी ही चुकता कर दूँगा ।
शंकर प्रसाद - यही बात तुम तीन महीने से कह रहे हो । आखिर मुझे भी तो गृहस्थी चलानी है । अब घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या? एक ले देकर पांच छह जगह से किराया आ जाता है उसी से ही मेरा घर खर्च चलता है । अब बताओ मैं कब तक यूँ ही तुम्हें अपने घर में रख सकता हूँ?
परिमल - बस दो एक महीने की मोहलत दे दो । जल्द ही तुम्हारा बकाया सूद समेत लौटा दूंगा।
( तभी धर्मपाल घर में प्रवेश करता है)
परिमल और उसकी पत्नी के चेहरे पर चिंताजनक रेखाएं और बढ़ जाती हैं।
परिमल - (अपनी चिंता को छिपाते हुए ) अरे लालाजी , आइए -आइए ...
धर्मपाल -क्या बात है परिमल, कुछ दिनों से दुकान पर आए ही नहीं । हे- हे -हे... इधर से गुजर रहा था तो सोचा ही लेता चलूं तकादा करने निकला था , सोचा था कि तुमसे।
परिमल - मैं आपके पास आने ही वाला था ,वो क्या है कि पिछली बार जो राशन लाया था वो भी समाप्त हो चला है । यदि हो सके तो ...एक महीने के लिए और....
धर्मपाल - (बीच में बात काटते हुए ) अरे! नहीं भाई नहीं, पहले ही बकाया इतना हो चुका है अब आगे के लिए मैं और राशन उधार नहीं दे सकता ।
परिमल - लाला जी, आप चिंता न करें , जैसे ही कोई काम मिलेगा , मैं आपके सारे पैसे लौटा दूंगा ।
धर्मपाल - तुम तो बाबू थे ना किसी दफ्तर में ! क्या हुआ?
परिमल -क्या बताएं लालाजी ,अस्थाई नौकरी का क्या?आज है कल नहीं। किस्तों में कुछ सामान खरीदा था तो उसे भी चुकाने के पैसे नहीं है।अब तो दो वक्त की रोटी के ही लाले पड़े हुए हैं lपरेशान हूँ , कुछ समझ में भी नहीं आता क्या करूँ ।महीने भर से कोशिश कर रहा हूँ कोई नौकरी भी नहीं देता । हेमलता भी दिन-रात स्वेटर बुनकर घर खर्च में मदद तो करती है किंतु उससे भी क्या होता है ?
धर्मपाल -तो पहले क्यों नहीं बताया? एक काम करो ,कल से मेरे यहाँ दुकान पर काम करने आ जाओ । तुम तो कंप्यूटर चलाना भी जानते हो , जब तक तुम्हें अच्छी नौकरी नहीं मिल जाती, मेरे साथ काम कर सकते हो।
शंकर प्रसाद- यह बात आपने सही कही लाला जी, अब मुसीबत में हम लोग ही काम नहीं आएंगे तो कौन आएगा ? मेरा किराया भी चुकता कर पाएगा, भले ही किस्तों में ही क्यों ना हो ... हा -हा-हा ठहाकों की आवाज से कमरा गूंज उठता है ।
परिमल - आप की बहुत बहुत मेहरबानी लाला जी ।मैं कल से काम पर आ जाऊंगा। मैं ही संकोच के कारण किसी को अपनी
परेशानी नहीं बता पाया कि लोग क्या कहेंगे? बेकार में जग हँसाई होगी ।आज एक बात मेरी समझ में आ गई है दो वक्त की रोटी के आगे कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। व्यक्ति को अपनी चादर के अनुसार ही पाँव फैलाने चाहिए।
शंकर प्रसाद- अब की ना समझदारी की बात !(हा -हा - हा सभी सम्मिलित स्वर में हँसते हैं) ।
पर्दा गिरता है।
---किरण बाला, चंडीगढ़
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