यहाँ सतत संघर्ष विफलता कोलाहल का राज है...
अंधकार में डूब रहा मतवाला सब संसार है...
कुछ माह से मुझे ऐसा हीं लग रहा है.रात के करीब दस बजे मोबाईल फोन बंद करके सोने हीं वाली थी की कॉल आ गया।मेरी एक छात्रा का फोन था मैं सोंच में पड़ गई इतनी रात को...?प्रगति का फ़ोन.जब से मेडिकल की परीक्षा में कम अंक आया है तब से कुछ परेशान सी रहती थी क्योंकि वो और उसकी दोस्त दोनों बचपन की मित्र ।साथ-साथ पढाई की दोनों हीं क्लास में अव्वल आती प्रगति की दोस्त उन्नति कुछ अंकों से हमेशा पीछे हो जाती किन्तु प्रगति हर विषय में पूरे स्कूल में प्रथम स्थान लाती हर क्षेत्र में आगे रहती।उसका सपना था की डॉक्टर बनकर समाज के पिछड़े,गरीब और लाचार की सेवा करेगी।वो हर वक्त हँसती खिलखिलाती रहती वह मेरी प्रिय तथा सदा दिल के करीब रहनेवाली उसे देख उदास चेहरा खिल जाता।परन्तु परीक्षा के परिणाम आने के बाद से उसे ऐसा सदमा लगा की उसकी हंसी हीं गायब हो गई।हालाँकि मेरी हर बात समझती और मानती ,किन्तु वो एक ही बात का रट लगाये थी ।मुझे जब देखती बस एक हीं सवाल करती "...मिस आप तो हमेशा यहीं पढ़ातीं रहीं सब सामान्य हैं हमें किसी से भेद भाव नहीं करना चाहिये,फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? मैंने उन्नति (उन्नति पिछड़े वर्ग से है)से ज्यादा सवाल बनाये उससे ज्यादा अंक भी आया फिर भी उसका मेडिकल में हो गया और मेरा.. उसकी आँखे छलक आतीं ,मेरा भी मन भर जाता।सोचती क्या करूँ मैं ?ये आरक्षण तो न जाने क्या करके रहेगा।ये सब सोचते हुये मैंने फ़ोन उठाया..."हलो "..कहने ही वाली थी की उधर से प्रगति की माँ ने रोते हुये कहा ..."मिस आपकी प्रगति नहीं रही....मेरे हाथ से फोन गिर गया मैं शून्य हो गई..जिसको आरक्षण दिया जा रहा है वो सामान्य आदमी बन ही नहीं पा रहा है।
जैसे किसी व्यक्ति को आरक्षण दिया गया और वो किसी सरकारी नौकरी में आ गया!अब उसका वेतन ₹5500 से₹50000 तक महीना है पर जब उसकी संतान हुई तो फिर वही से शुरुआत !फिर वही गरीब पिछड़ा और सवर्णों के अत्याचार का मारा पैदा हुआ ।उसका पिता लाखों रूपए सालाना कमा रहा है तथा उच्च पद पर आसीन है।सारी सरकारी सुविधाए ले रहा है।
वो खुद जिले के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है और सरकार उसे पिछड़ा मान रही है।सदियों से सवर्णों के अत्याचार का शिकार मान रही है।आपको आरक्षण देना है बिलकुल दो पर उसे नौकरी देने के बाद सामान्य तो बना दो ।यह आरक्षण कब तक मिलता रहेगा उसे ?? इसकी भी कोई समय सीमा तो तय कर दो कि बस जाति विशेष में पैदा हो गया तो आरक्षण का हकदार हो गया।दादा जी जुल्म के मारे,बाप जुल्म का मारा तथा पोता भी जुल्म का मारा! वाह रे मेरे देश का दु:भा्ग्य!*
जिस आरक्षण से उच्च पदस्थ अधिकारी , मन्त्री , प्रोफेसर , इंजीनियर, डॉक्टर भी पिछड़े ही रह जायें, ऐसे असफल अभियान को तुरंत बंद कर देना चाहिए ।जिस कार्य से कोई आगे न बढ़ रहा हो उसे जारी रखना मूर्खतापूर्ण कार्य है।
हम में से कोई भी आरक्षण के खिलाफ नहीं, पर आरक्षण का आधार जातिगत ना होकर आर्थिक होना चाहिए।ऒर तत्काल प्रभाव से प्रमोशन में आरक्षण तो बंद होना ही चाहिए।नैतिकता भी यही कहती है। क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी मंदिर में प्रसाद बँट रहा हो तो एक व्यक्ति को चार बार मिल जाये ,और एक व्यक्ति लाइन में रहकर अपनी बारी का इंतजार ही करता रहे।आरक्षण देना है तो उन गरीबों ,लाचारों को चुन चुन के दो जो बेचारे दो वक्त की रोटी को मोहताज हैं...चाहे वे अनपढ़ हो चौकीदार , सफाई कर्मचारी ,सेक्युरिटी गार्ड कैसी भी नौकरी दो....हमें कोई आपत्ति नहीं।
ऐसे लोंगो को मुख्य धारा में लाना सरकार का सामाजिक उत्तरदायित्व है।परन्तु भरे पेट वालों को बार बार 56 व्यंजन परोसने की यह नीति बंद होनी ही चाहिए।जिसे एक बार आरक्षण मिल गया उसकी अगली पीढ़ियों को सामान्य मानना चाहिये और आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिये।" शान्ति नहीं तब-तक जब-तक-सुख भाग न सम हो.नहीं किसी का बहुत अधिक हो नहीं किसी का कम हो ।(कुरुक्षेत्र से)क्या आप भी सहमत हैं ?
इंदु उपाध्याय
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