कुशल कवयित्री- डॉक्टर विजेता साव

व्यंग्य लेखन 
वह बड़ी कवयित्री थी। बहुत बड़ी कवयित्री, बड़ी कवयित्री... मतलब तो समझते हैं ना?जिस की डिमांड हो ,जिसकीउपस्थिति से, जिसके दर्शन मात्र से नवागत लेखक या कवि खुद को कृतकृत्य समझे ,पब्लिशर जिस की किताबें छाप कर खुद को धन्य समझे ,जिसे देख सुनकर लोगों में 'छपने 'की ललक पैदा हो क्योंकि जो 'छपा 'नहीं वह कवि कैसा और कहां का? और भाई छपने के लिए' विचार 'नहीं, जेब में ..हां ..हां ,वही जो आप समझ रहे हैं... जेब में ..होना चाहिए ।देखिए ,बात तो यह सीधी है जेब भरी है तो आप नवागत कवि या 'ओरिजिनल जीनीयस 'लेकिन जेब से खाली एवं हालात से मजबूर हो तो आप बड़ी कुशलता से अपनी जेब उसके सामने खनका सकते हैं और फिर नाम आपका ,किताबें आपकी ,पब्लिशर्स आपके ,मंच और सम्मान भी आपका और तो और पाठक और प्रशंसक भी आपके ।हमारे देश और साहित्य का विशेषकर हिंदी साहित्य का यही दुर्भाग्य रहा कि जीते जी महाप्राण निराला, मुक्तिबोध जैसे कवि बड़े नहीं बन पाए। खैर, हम बात कर रहे हैं उस कवयित्री की जिसका घर पूरा का पूरा अवार्ड से भरा हुआ था ,जाने कितनी किताबें कितने सम्मान  ।
कोई ऐसा राज्य ना होगा जहां उसके पाठक या प्रशंसक ना हो ।राज्य या देश की कौन कहे वह तो राष्ट्र की सीमा पार अंतर्राष्ट्रीय हो चुकी थी ।हर संगोष्ठी ,कार्यशाला के व्यवस्थापक, संचालक ,अध्यक्ष उसे ही अपना मुख्य अतिथि बनाना चाहते थे क्योंकि उसकी उपस्थिति ही नहीं ...कहना चाहिए उसका नाम ही काफी था कार्यक्रम की सफलता के लिए ।हो भी क्यों ना जितना अच्छा लिखती थी, उससे भी अच्छा वह बोलती थी और उससे भी सुंदर, बहुत सुंदर वह दिखती थी सुंदर रुप,सुंदर वाणी...खैर,रुप को छोड़  दूंँ तोअब कुशल वक्ता के रूप में उनकी विद्वता ,उनकी वाकपटुता, उनकी मोहिनी अदा के बारे में क्या कहूं !!?बिल्कुल सधे -सधे लहजे में बोलती थी ताकि कहीं कुछ याद किया भूल ना जाए आखिर श्रोताओं को भी आने का, सुनने का ,लाभ मिलना चाहिए। वह इस मामले में बड़ी सख्त थी ,किसी को निराश नहीं करती सबको आने का ,उन्हें सुनने का, उनकी कविताओं को पढ़ने ,बांटने एवं समीक्षा करने का पूरा पारितोष देती थी ।खबरदार !..कोई भी यह नहीं कह सकता कि वह एक सच्ची कलाकार या कवयित्री नहीं है। पूरा ख्याल रखती थी अपने प्रशंसकों का और 'फेमिनिज्म' के नाम पर पुरुषों पर हो रहे शोषण के तो सख्त खिलाफ थी।
इसलिए पुरुषों को पूरे सम्मान एवं प्यार से उनका उचित हक दिलाने के लिए तत्पर रहती थी चाहे कविता के बहाने या फिर व्यवहारिक दुनियादारी या समाज में ।कोई स्त्री चाहे उनके कारण तबाह हो जाए लेकिन क्या मजाल है कि कोई पुरुष उसके द्वार से खाली हाथ लौट जाए ।कभी नहीं ।तन ,मन ,धन से प्रस्तुत रहती वह पुरुष उद्धार के लिए चाहे वह किसी भी उम्र का हो ,वह समझती थी भूख और प्यास को चाहे वह धन की हो या तन की ।आंखें इन जरूरतों को अनदेखा  कैसे कर सकती थी वह तो एक सच्ची कवयित्री थी ।भरना जानती थी ..और सभी को.. और भरती थी। कौन कहता है कि सामने वाले को भरने से कोई खुद खाली होता है ।वह तो भरने की कला में निपुण थी ।बहुत निपुण तभी तो आज उसके घर भी भरे हैं धन से, अवार्ड से और नए-नए अंकुरित होते नवागत नौजवानों से और उनसे भी जो पतझड़ के पत्तों से गिरने के पहले भी सावन की बूंदों से खुद को तृप्त करना चाहते हैं ।सच धन्य है कवयित्री जी आप की महिमा !अपरंपार...! उनको देखकर कह सकती हूं कवयित्री बनना इतना आसान नहीं ...बड़ी मेहनत करनी होती है ।वह भी एक बड़ी सफल कवयित्री बनने के लिए...।

डॉक्टर विजेता साव कोलकाता ,पश्चिम बंगाल 
फोटो पर क्लिक करके चैनल का सस्‍क्राइबर कर उत्‍साहवर्धन करें।


 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ