क्या पुरुष नहीं होते उत्पीडन के शिकार ? अलका


कथन पर व्याख्या क्या पुरुष नहीं होते उत्पीडन के शिकार ?


क्यों नहीं होते बहुत होते है , छोटे लड़कों से लेकर बड़े पुरुषों तक सब होते है उत्पीडन के शिकार  का शोषण रिश्तेदार करते हैं ,पर बच्चा कह नहीं पाता कई देखने में आया है की स्कूलों कालेजों में लड़कों शोषण होता है , बलात्कार होता है ,बहुत केस मिल जायेगे इस तरह से पर ये अलग बात है की इसकी शिकायत बहुत कम दर्ज होती है।
सर्वे बताते हैं कि लड़कियों के यौन शोषण के मामले में पुलिस अब जल्दी सक्रिय हो जाती है। लेकिन लड़कों के ठीक ऐसे ही मामले में कुछ खास ध्यान नहीं दिया जाता। सच तो यह है कि लड़कों के साथ हो रहे इन यौन अपराधों के लिए कानूनी पहलू से कहीं ज्यादा सामाजिक सोच जिम्मेदार है। समाज मानकर चलता है कि यौन शोषण तो लड़कियों का ही हो सकता है। यह बात आमतौर पर दिमाग में नहीं आती कि इसका शिकार लड़के भी होते हैं। जो आजकल काफ़ी हो रहे है लड़कियों के मुकाबले लड़के यौन शोषण के ज्यादा शिकार हो रहे हैं। यह कोई हैरान करने वाला तथ्य नहीं बल्कि प्रयासपूर्वक सालों से छिपाया जाने वाला नंगा सच है, जिसे निरंतर नकारा व झुठलाया जा रहा है। आमतौर पर लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते। सोचते हैं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। इससे कोई खास नुकसान नहीं होता।
मेरे पास इस तरह के “केस “आये पर पिता नहीं चाहता था की उसका खुलाशा हो उनका कहना था क्या फ़र्क़ पड़ता है न गर्भ ठहरेगा न कुछ नुकसान  मैंने बहुत समझाया और बच्चों का सवाल है नौ साल के बच्चे के साथ उसके दिमाग़ पर असर पड़ेगा पर नहीं माने यह तो हाल है हमारे समाज का मैं एक समाजसेविका होने के नाते कह रही हूँ , पुरुष उत्पीडन भी उतना ही घातक है जितना महिला , पुरुषो को सामने आकर शिकायत दर्ज करना चाहिए।
समाज को अपनी सोच बदलनी पड़ेगी । सवाल यह है कि अगर शारीरिक शोषण से किसी का कौमार्य भंग नहीं होता तो क्या इसे अपराध नहीं माना जाएगा? यौन शोषण के शिकार पुरुषों को भी महिलाओं के समान ही पीड़ा और मानसिक आघात झेलना पड़ता है। इसके साथ ही उन्हें समाज द्वारा मजाक बनाए जाने का डर भी सताता है, जो कई बार उन्हें अवसाद में धकेल देता है। जिस तरह लड़कियां अपने घर में असुरक्षित हैं, वैसे ही छोटे लड़के भी यह खतरा झेलते हैं। कई बार तो उन्हें अपने रिश्तेदारों के ही हमले का शिकार होना पड़ता है। स्कूलों में उन्हें शिक्षकों, अन्य कर्मचारियों या सीनियर छात्रों से खतरा रहता है। पर हादसा होने पर भय या संकोच के मारे ‌‌‌‌‌‌‌‌वे लंबे समय तक किसी से कुछ नहीं कहते और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। कई बच्चे तो समझ ही नहीं पाते कि उनके साथ हो क्या रहा है। इसका उनके व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे बच्चे आगे चलकर काफी कुंठित और असहज हो जाते हैं। कई बार आत्महत्या तक कर लेते है । अभिभावक पता नहीं लगा पाते क्या हुआ था ! 
कुछ बच्चे अपने परिवार में इस तरह की बात बताते भी हैं, तो उन्हें चुप रहने के लिए कहा जाता है। यह बहुत शर्मनाक व पीड़ादायक है । पुरुषो का शोषण की बात करने पर उसका मज़ाक़ बनाया जाता है लोग हँसते है .... जो ग़लत है गम्भीरता से इस पर चिंता और मनन होना चाहिए तथा दण्ड दिलाना ही चाहिए यह मानसिक विकार है जो समाज में नासूर बन जायेगा समाज को मिलकर इस पर जाग्रति लाना चाहिए , लड़कियों को ही नहीं लड़कों को भी समझना चाहिए कोँई व्यक्ति ग़लत हरकत करे तो चिल्लाओ सबको बताओ डरो नहीं न शर्माओ , हमें बताओ . हमशें कुछ छिपाना नही बच्चों को भरोसा दिलाना बहुत जरुरी है .....हम है आप डरना नहीं .. !


डॉ अलका पाडेंय (अगनिशिखा मंच)
देविका रो हाऊस प्लांट  न.७४ सेक्टर १
कोपरखैराने  नवि मुम्बई च४००७०९
ई मेल alkapandey74@gmail.com



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