कहने को तो उनका नाम सेठ धनसी राम था पर सब उन्हें मोटू सेठ कहकर बुलाते थे । अपनी थुलथुली तोंद को हिलाते हुए जब कभी सड़क पर चलते हुए दिखाई देते तो किसी की भी हँसी थमने का नाम ही नहीं लेती थी । सफ़ेद धोती कुर्ता , सिर पर फ़ेद सूती टोपी , कंधे पर अंगोछा , पैर में चमड़े की काली जूती में किसी धन्ना सेठ से कम नहीं लगते थे ।
किसी जमाने में उनके दादा परदादा हलवाई का काम करते थे । जिसका विस्तार उनके पिताजी ने अपनी मेहनत से किया था। कुल मिलाकर घर परिवार में किसी किस्म की कमी नहीं थी । यही वजह रही कि मोटू सेठ को कभी कोई काम करने की जरूरत पड़ी ही नहीं ।जीवन के चालीस वसंत पार कर चुकने के बावजूद भी अभी तक कुंवारे ही थे ।
अब क्या बताएं , जब भी कोई लड़की देखने जाते तो कुछ ही देर में खाने पीने की वस्तुओं का ऐसे सफाया कर देते कि लड़की वाले दाँतों तले अँगुली दबा लेते । बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़ मना कर देते ।बेचारे मोटू सेठ मन मार कर वापस आ जाते।अब तो उनकी ख्याति दूर गाँवों तक पहुँच चुकी थी । नाम सुनते ही सब पीछे खिसकने में ही अपनी भलाई समझते। वो कहते हैं ना...भगवान के घर देर है अंधेर नहीं , आखिर मोटू सेठ का भी रिश्ता तय हो ही गया । घर तो क्या, पूरे मोहल्ले को दुल्हन की तरह सजा दिया गया ।
सभी रस्मों रिवाज के बाद बारी आई घुड़चढ़ी की। बड़ी शान से तोंद हिलाते हुए जब वो घोड़ी के पास आए तो उसने भी गर्दन घुमाकर उनकी ओर देखा । वो भी छिटककर चार कदम दूर खड़ी हो गई और जोर - जोर से हिनहिनाने लगी । घोड़ी के मालिक ने बड़े प्यार से उसे पुचकारा और शांत किया । उसकी लगाम को इस तरह कस कर पकड़ा कि उसे कुछ दिखाई न दे कि उस पर कौन बैठने वाला है ? अभी भी एक समस्या और थी कि मोटू सेठ को घोड़ी पर चढ़ाएगा कौन? चार हट्टे - कट्टे नौजवानों का प्रबन्ध किया गया । जैसे ही उन्होंने एक पाँव घोड़ी की कमर पर रखा ही था कि वो संतुलन खो कर एक तरफ जमीन पर लुढ़क गई । उसके साथ ही मालिक और उनके ऊपर मोटू सेठ ...वो तो शुक्र था कि सभी के हाथ पैर सलामत थे । घोड़ी वाले ने भी हाथ खड़े कर दिए और अपनी घोड़ी लेकर चलता बना ।जैसे - तैसे बग्घी पर बैंड बाजे के साथ बारात निकली
गई । जयमाल के समय दुल्हन तो मानो दिखाई नहीं दे रही थी , बस दूल्हे राजा ही दिखाई दे रहे थे । बड़ी विचित्र जोड़ी थी फिर भी सब कहे जा रहे थे कि क्या खूब
जोड़ी है ! स्टेज पर सजी कुर्सियाँ मोटू पतलू की जोड़ी लग रहीं थीं । जब लड़की की विदाई हुई तो वो बहुत जोर - जोर से रोने लगी । वो तो बाद ने पता चला कि अधिक रोटियाँ बेलने के चक्कर में उसकी रूलाई फूट रही थी । बहू घर में आ जाने से सभी प्रसन्न थे ।अब आगे की बात सुनो , शादी क्या हुई , उन पर एक एक नया संकट आन पड़ा । उनका सारा आराम , चैन न जाने कहाँ छू - मंतर हो गया था ? गृहस्थी में इतने पिसे कि पिस्ते ही चले गए । अब कहानी घर - घर की है , सब जानते ही हैं । चार पाँच सालों में ही उनकी मटके सी तोंद और डील डोल अपनी उचित अवस्था में आ गया । मोटू सेठ अब मोटू सेठ न होकर सेठ धनसी राम हो गए थे । अब शादी उनके लिए वरदान साबित हुई या अभिशाप ये तो वो ही जानें । रही बाकी लोगों की बात ,
वो तो मोटू सेठ के नए अवतार से बेहद प्रसन्न हैं ।
--- किरण बाला , चंडीगढ़
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